अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 05-06, जनवरी-फ़रवरी 2017
हमीद कानपुरी
ग़ज़ल
रोज़ोशब मत सता जिन्दगी।
अब न अहसां जता ज़िन्दगी।
लाज इसकी रखो हर तरह
रब ने की है अता ज़िन्दगी।
खेल तेरा बहुत हो चुका
कर न अब तू खता ज़िन्दगी।
क्यों बताती धता ज़िन्दगी।
यार मेरा जहाँ आज दिन
ढूँढ़ ला वो पता ज़िन्दगी।
लक्ष्य को भेदकर के दिखा,
तीर मत कर खता ज़िन्दगी।
(रोज़ोशब-रातदिन)
- अब्दुल हमीद इदरीसी, सदनशाह, सिविल लाइन्स, ललितपुर, उ.प्र./मोबा. 09795772415
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें