अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 05-06, जनवरी-फ़रवरी 2017
मार्टिन जॉन
अंधेरों ने उसे बहुत सताया था।
एक लंबी ऊम्र गुज़र गई अंधेरों से लड़ते-लड़ते। अंततः काफी ज़द्दो-ज़हद के बाद उसने अंधेरों पर फ़तह हासिल कर ली। अब उसके पास अंधेरों का सामना करने के लिए ज़रुरत भर रौशनी है। चूंकि वह अंधेरों के खिलाफ़ ज़ंग करने वालों के दर्द से वाकिफ़ था, इसलिए अपने हिस्से की थोड़ी सी रौशनी बांटने की चाहत उसके अन्दर जागी। अपनी चाहत को अमली जामा पहनाने के लिए उसने अपने मकान के मुख्य द्वार पर लगे बिजली का बल्व रात भर जलाए रखने लगा। इससे हुआ यह कि मुख्य गली का गहन अंधेरा मुँह छुपा कर भाग गया। नये बसे मोहल्ले के तमाम मकानात के बाहर की बत्तियां बुझा दी जाती थीं। अब उसके मकान का बल्व पूरी रात अंधेरों को खदेड़ता रहता। रात की पाली वाली ड्यूटी करने वाले मोहल्ले के रेलकर्मी और कोयलाकर्मी उसकी इस उदारता के लिए मन-ही-मन शुक्रिया अदा करते? लेकिन पत्नी उसकी इस दरियादिली पर तंज कसती, ‘‘...दुनिया जहान का अंधेरा दूर भगाने का ठेका ले रखे हैं क्या?...नापा शोरबा, नपी बोटी के मौजूदा वक़्त में ज़रा बिल के बारे में भी सोच लिया करो।’’ पत्नी के व्यंग्यवाण उसकी चाहत को ज़ख़्मी करने में नाकामयाब रहे।
अंधेरे मुँह उठने की उसकी आदत है। सो, उस दिन भोर में उठकर उसने देखा, बत्ती बुझी हुई है। भोर के धुंधलके में उसे मेन गेट पर कांच के टुकड़े इधर-उधर बिखरे दिखे। उसका मन आहात हो गया। अंधेरा दूर भगाने की कोशिश और रौशनी बांटने की उसकी चाहत शायद किसी को रास नहीं आयी। वह कुछ बुझ सा गया। मुख्य गली में फिर से अंधेरों के वर्चस्व की कल्पना उसे बेचैन करने लगी...
रात घिरने से पहले उसने एक फैसले के तहत खुद को बुझने से बचाए रखा...
उस रात उसके मेन गेट पर नया बल्व जगमगा रहा था....
- अपर बेनियासोल, पो. आद्रा, जि. पुरुलिया-723121, पश्चिम बंगाल/मोबा. 09800940477
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