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शुक्रवार, 26 मई 2017

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  6,   अंक  :  05-06,  जनवरी-फ़रवरी  2017




।। कथा प्रवाह ।।



डॉ. बलराम अग्रवाल



घुन वाले खम्भे

‘‘हाँ, तो फिर?’’ आरोप सुनकर सफेदपोश ने तरेड़ के साथ पूछा।
‘‘यह अमानवीय कर्म है!’’ डराने वाले अन्दाज़ में वह दहाड़ा।
‘‘है, तो फिर?’’
‘‘इन गोरखधंधों के खि़लाफ़ राष्ट्रीय स्तर के पेपर्स और चैनल्स को सबूत दूँगा मैं। और...।’’
      ‘‘और?’’ लापरवाह तरीके से मुस्कुराते हुए सफेदपोश ने बीच में ही टोका।
      और...और...’’ जबर्दस्त तनाव के कारण उसका बदन काँप उठा। सफेदपोश की मुस्कान से हत्प्रभ वह तुरन्त सोच नहीं पाया कि ‘और’ के आगे क्या कहे।
      ‘‘तुझे जहाँ जो उखाड़ना है शौक़ से उखाड़...’’ इस बार सफेदपोश ने होठों से मुस्कराहट को हटाकर कहा, लेकिन मेरी तरफ से मानहानि के मुक़द्दमे के लिए तैयार होकर करना उखाड़ना। एक करोड़ का ठोकूँगा।’’
      ‘‘डरा रहे हैं?’’
      ‘‘डरा नहीं रहा, बता रहा हूँ।’’ उसके स्वर में आक्रामक तीखापन था, सबूतों को सँभालकर रखना; कोर्ट में काम आयेंगे।’’
      उसकी हेकड़ी देखकर वह दाँत किटकिटाकर रह गया। बड़ी मोटी खाल का आदमी है!... उसने सोचा.... बहुत ऊपर तक पहुँचाता लगता है पत्ती।
      उसे असंजस में देख, उँगलियों के बीच फँसी सिगरेट की राख को मेज पर रखी एस्ट्रे में झाड़ते हुए सफेदपोश व्यंग्य-भरे लहजे में बोला, अगर मैंने ‘घो...ऽ...र अपराध’ किया है...और तूने सारे सबू...ऽ...त भी जुटा रखे हैं, तो तू मेरे पास क्या करने आया है? सीधा चला क्यों नहीं गया ‘राष्ट्री...ऽ...य स्तर के’ पेपर्स और चेनल्स के पास?’’
      ‘‘सम्बन्धित पार्टी को चेताना होता है उसके खिलाफ कहीं जाने से पहले।’’ वह बोला, ‘‘एक मौका दिया जाता है सँभलने का।’’
      ‘‘सँभलने का मौका!!  क्यों?’’
      ‘‘तकाज़ा है इन्सानियत का! ...उसूल है धन्धे का !!’’ उसकी ढीठता से लगातार चौंकने के बावजूद वह रौब जमाता-सा चीखा, पत्रकार हूँ, कसाई नहीं कि बंदे को चीरने के पैसे तो घरवालों से वसूल कर लूँ और उसके भीतर का माल बाहर वालों को बेच डालूँ। और...और यह ‘तू-तड़ाक’ वाली भाषा! कोई तरीका भी होता है बात करने का या नहीं?’’
      ‘‘तू मेरे ही क्लीनिक में मुझे धमकाने आया है; और मैं तुझसे तमीज़ के साथ बात करूँ!!!’’ सफेदपोश बोला, चल छोड़, क्या लेगा... यह बता।’’
      ‘‘मैं दावत उड़ाने नहीं आया हूँ यहाँ।’’ उसने कड़ेपन से प्रतिवाद किया।
      ‘‘मान ली तेरी बात! चाहता क्या है?’’
      ‘‘इस प्रस्तावनुमा सवाल को सुनकर उसने बात को और-खींचना ठीक नहीं समझा। तुरन्त बोला, आप मित्रवत् सम्मान देंगे तो मैं सहर्ष आपके खि़लाफ़ संघर्ष के रास्ते से हट जाऊँगा।’’
         यह बात सुन सफेदपोश पुनः मुस्कुरा उठा। बोला, ‘‘जब चाहे तब, मित्रवत् बता जाना सम्मान की राशि।’’ फिर उसके चेहरे पर नज़रें गाड़ते हुए काइयाँ अन्दाज़ में पूछ बैठा, ‘‘अच्छा, एक बात बता... मेरे खिलाफ संघर्ष के रास्ते से हटने की बात छोड़; ‘इन्सानियत’ दिखाने वाली इस पत्रकारिता से हटने की कितनी क़ीमत लेगा?’’              
  • एम-70, उल्धनपुर, दिगम्बर जैन मन्दिर के पास, नवीन शाहदरा, दिल्ली-32/मोबा. 08826499115

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