अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 07-10, मार्च-जून 2017
।। कथा प्रवाह ।।
सुदर्शन रत्नाकर
भाई जैसा
जब भी वह उस संकरी गली से निकलता, एक गरीब-सा दिखने वाला लड़का प्रायः उसकी चमचमाती लम्बी गाड़ी को हसरत भरी निगाहों से देखता। एक दिन उसने गाड़ी रोककर उसे अन्दर बैठने का निमन्त्रण दे दिया। वह लड़का खुशी-खुशी गाड़ी में बैठ गया।
‘‘आपकी गाड़ी बहुत बढ़िया है, कितने की होगी सर!’’
‘‘पता नहीं, मेरे भाई ने मुझे उपहार में दी है।’’
‘‘आपका भाई बहुत अच्छा है।’’
‘‘क्या तुम भी चाहते हो, तुम्हारा भी कोई ऐसा भाई हो।’’
‘‘नहीं सर! मैं आपके भाई जैसा बनना चाहता हूँ।’’
उसने तपाक से जवाब दिया।
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