अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 07-10, मार्च-जून 2017
।। कथा प्रवाह ।।
कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’
सोच का फ़र्क़
मणि ने घर से बाहर जाने के लिए कदम रखा ही था कि बहू ने पूछा, ‘‘मम्मी, जाते-जाते यह तो बताइए कि आज सब्ज़ी क्या बनाऊँ?’’
सासू माँ के जाते ही उसकी सहेली ने व्यंग्य से मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘क्यों निशा, शादी के इतने साल बाद भी तुम्हें सासू माँ से पूछकर सब्ज़ी बनानी पड़ती है? मैंने तो सब पूछना छोड़ दिया है। हम भी तो बड़े हो गए हैं। अब हमें उनसे पूछने की क्या आवश्यकता है?’’
निशा बड़े सहजभाव से बोली, ‘‘मैं तो भई अभी तक पूछती हूँ। एक तो अपने दिमाग पर जोर नहीं देना पड़ता, दूसरे वे सबकी पसंद का ध्यान रखते हुए सब्ज़ी तजवीज़ करती हैं और मेरे काम को आसान कर देती हैं।’’
- ‘शिवनन्दन’, 595, वैशाली नगर, उज्जैन-456010, म.प्र./फोन 0734252001
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