अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 01-04, सितम्बर-दिसम्बर 2017
डॉ. रघुनन्दन चिले
क्या आदमी भी देखता है सपने पेड़ और चिड़ियों की तरह
चिड़ियाँ चहचहा रही हैं
मानो सूरज की विदाई से हर्षित
साँझ के गीत गा रही हैं
ढल जायेगी जब साँझ रात में
चिड़ियाँ सो जायेंगी
खो जायेगा दिन का यथार्थ
चिड़ियाँ देखेंगी हरे-हरे सपने
कद्दावर पेड़ों की तरह
पेड़ चिड़िया बनकर
दुबक जायेंगे नीड़ में
फिर चिड़िया और पेड़
पेड़ और चिड़िया
एक रंग हो जायेंगे
सिन्दूरी सुबह में
सिन्दूर से आपाद-मस्तक
रंग जायेंगे, करेंगे नृत्य, झूमेंगे
हवा के झकोरों के साथ गायेंगे
पुलकित होंगे
करेंगे सूरज का अभिषेक
खो चुके होंगे रात के सपने
दिन के खुरदरे यथार्थ पर
चलने का होगा उपक्रम
क्या आदमी भी देखता है सपने
पेड़ और चिड़ियों की तरह
- 232, मागंज वार्ड नं. 1, दमोह-470661, म.प्र./मो. 09425096088
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