आपका परिचय

रविवार, 12 नवंबर 2017

लघुकथा विमर्श

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  7,   अंक  :  01-04,  सितम्बर-दिसम्बर 2017




।।लघुकथा विमर्श।।

{इस ब्लॉग के जुलाई-अगस्त 2017 अंक तक लघुकथा सम्बंधी आलेख एवं साक्षात्कार ‘अविराम विमर्श’ स्तम्भ में प्रकाशित किए जाते रहे हैं। इस अंक से लघुकथा विमर्श सम्बंधी समस्त सामग्री इस नए स्तम्भ ‘लघुकथा विमर्श’ स्तम्भ में ही जाएगी। कृपया पूर्व में प्रकाशित लघुकथा विमर्श की खोज ‘अविराम विमर्श’ स्तम्भ में ही करें।} 



डॉ. बलराम अग्रवाल




लघुकथा में नेपथ्य
{‘लघुकथा में नेपथ्य’ के मुद्दे को उठाने वाला यह लघु आलेख बलराम अग्रवाल जी ने 1991 में लिखा था और ‘पड़ाव और पड़ताल खण्ड-17’ में संकलित है। ‘नेपथ्य’ की भूमिका लघुकथा सृजन में बेहद महत्वपूर्ण होती है, लेकिन लघुकथा समालोचना में इसे अपेक्षित महत्व नहीं दिया गया। हमें लगता है इस पर कई कोंणों से चर्चा हो सकती है और लघुकथा समालोचना का एक विशिष्ट आधार बन सकता है ‘नेपथ्य’। नए लघुकथाकार ‘नेपथ्य’ को सही सन्दर्भ में समझकर उसके उपयोग के बारे में जागरूक बनें, इसी उद्देश्य से यह आलेख यहाँ प्रस्तुत है।}

      लघुकथा, कहानी और उपन्यास की प्रकृति और चरित्र में इनके नेपथ्य के कारण भी आकारगत अन्तर आता है। उपन्यासकार स्थितियों-परिस्थितियों और घटनाओं को यथासम्भव विस्तार देता है तथा पाठक के समक्ष पात्रों की मनःस्थिति, चरित्र, परिस्थितियाँ, गतिविधियाँ एवं तज्जनित परिणाम तक का ब्यौरा देने को उत्सुक रहता है; इस तरह उपन्यास अत्यल्प या कहें कि नगण्य नेपथ्य वाली कथा-रचना है। कहानीकार जीवन के विस्तृत पक्ष को रचना का आधार नहीं बनाता। इसके अतिरिक्त, जीवनखण्ड से जुड़ी अनेक घटनाओं को विस्तार से लिखने की बजाय उनको वह आभासित करा देना ही यथेष्ट समझता है, क्योंकि गति की दृष्टि से उपन्यास की तुलना में कहानी को एक त्वरित रचना होना चाहिए। अतः उपन्यास की तुलना में कहानी का नेपथ्य कुछ अधिक गहरा और विस्तृत हो सकता है। बावजूद इसके, कहानी का नेपथ्य उपन्यास की प्रकृति और चरित्र से को-रिलेटेड और को-लिंक्ड रहता है, अतः कहानी ने सहज ही उपन्यास जैसी पूर्णता का आभास अपने पाठक को दिया और प्रतिष्ठित उपन्यासकारों व जड़-आलोचकों के घोर विरोध के बावजूद व्यापक जनसमूह के बीच अपनी जगह बना ली। लघुकथा आकार की दृष्टि से क्योंकि कहानी की तुलना में अपेक्षाकृत बहुत छोटी कथा-रचना है, अतः जाहिर है कि उसका नेपथ्य कहानी की तुलना में बहुत अधिक विस्तृत और गहरा होगा; लेकिन उसे कहानी के नेपथ्य से उसी प्रकार को-रिलेटेड और को-लिंक्ड रहना चाहिए जिस प्रकार कहानी का नेपथ्य उपन्यास के नेपथ्य के साथ रहता आया है। लघुकथा-लेखक इस तथ्य से अक्सर ही अनभिज्ञ और लापरवाह रहे हैं। उन्होंने अधिकांशतः ऐसी रचनाएँ लघुकथा के नाम पर लिखी हैं जिनमें प्रस्तुत रचना तथा उसके नेपथ्य में एक और सौ का अनुपात नजर आता है जो किसी भी रचना के लिए स्वस्थ स्थिति नहीं है। कोई भी पाठक किसी रचना के अन्धकूप सरीखे नेपथ्य में भला क्यों उतरना चाहेगा? इसी के समानान्तर एक सोच यह भी है कि लेखक पाठक-विशेष या रचना-विधा के सिद्धान्त-विशेष को ध्यान में रखकर रचना क्यों करे? अपने आप को अभिव्यक्ति के धरातल पर उन्मुक्त क्यों न रखे? वस्तुतः ‘अभिव्यक्ति के धरातल पर उन्मुक्त’ रहने का अर्थ उच्छृंखल अथवा अनुशासनहीन हो जाना नहीं माना जाना चाहिए। इंटरनेट के माध्यम से 5 शब्दों से लेकर 500 या ज्यादा शब्दों तक की ‘Flash Story’ लिखना सिखाने वाली व्यावसायिक साइटें कथा-विधा का भला कर रही हैं, कथा-लेखकों का भला कर रही हैं या स्वयं अपना- यह तो समय ही तय करेगा; फिलहाल यहाँ हिन्दी की कुछ कौंध-कथाएँ यानी 'Flash Story' साभार प्रस्तुत हैं-
एक
      राजपथ से गुजरती हुई सैनिक टुकड़ी क्विक मार्च करते हुए गा रही थी- हम सब एक हैं। फुटपाथ पर खड़े पुलिस के अफसर, सेठ रामलाल और प्रसिद्ध जुआरी गोवर्द्धन एक दूसरे की आँखों में हँसते हुए न जाने क्यों गाने लगे- हम सब एक हैं।
दो
      शेर गुर्राया, हिरण को खूँखार दृष्टि से देखा और फिर हिरण को कुछ किए बगैर गुफा के अँधेरे में चला गया। दोनों एक ही कश्ती के सवार थे।...
      बाहर आदमी घात लगाए बैठा था।
      इनके साथ ही मैं Wits अर्थात विलक्षण-वाक्यकथा की ओर भी लेखकों/पाठकों और संपादकों का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा। इन्होंने भी लघुकथा में हो रहे गंभीर प्रयासों को काफी धक्का पहुँचाया है। हिन्दी में लघुकथा के नाम पर प्रचलित Wits के कुछ नमूने निम्न प्रकार हैं-
एक
      इंपाला’ की पिछली सीट पर बैठे अल्सेशियन को देखकर अंगभंग भिखारी बच्चों ने ठंडी साँस लेकर कहा, “काश! हम भी ऐसे होते!”
दो
      डीयर ‘इतिहास’, तुम्हारे अध्याय अब कलमें नहीं, मैं लिखूँगी...
      मैं हूँ ‘बन्दूक’
तीन
      मैंने जब भी डुबकी लगानी चाही, सारा मानसरोवर चुल्लू हो गया!
चार
      सामान्य-ज्ञान की परीक्षा में एक परिक्षार्थी एक सरल से प्रश्न पर अटक गया। प्रश्न था-’भारत का प्रधानमन्त्री कौन है?’ उत्तर परीक्षार्थी को पता था, इस पर भी वह परेशान था। अन्ततः उसने लिख ही दिया, पर उसमें एक वाक्य और बढ़ा दिया। उसने लिखा- आज भारत के प्रधानमन्त्री श्री... हैं, परचा जाँचते समय कौन होगा, मालूम नहीं।
      इन विलक्षण-वाक्यकथाओं के लेखकों की हिन्दी-लघुकथा के क्षेत्र में लम्बी कतार है; और इन सब की प्रेरणा के मूल में सम्भवतः सुप्रसिद्ध कथाकार रमेश बतरा की बहुचर्चित लघुकथा ‘कहूँ कहानी’ रही है, जो निम्न प्रकार है-
      ए रफीक भाई! सुनो...उत्पादन के सुख से भरपूर थकान की खुमारी लिए, रात मैं घर पहुँचा तो मेरी बेटी ने एक कहानी कही, ”एक लाजा है, वो बो......त गलीब है।’’
      यहाँ हमारा हेतु क्योंकि लघुकथा की रचनात्मक प्रकृति और चारित्रिक तीक्ष्णता तथा उसके सही स्वरूप एवं स्तर को रेखांकित करना भर है, अतः ‘कौंधकथा’ और विलक्षण-वाक्यकथा समझी जाने वाली ऊपर उद्धृत हिन्दी रचनाओं के साथ उनके लेखक और संदर्भित पत्र-पत्रिका, संग्रह-संकलन अथवा संपादक के नाम आदि का उल्लेख नहीं किया गया है। यह ठीक है कि कोई अकेला आदमी लघुकथा का नियन्ता नहीं हैं, और यह भी कि किसी भी दृष्टि से हमारे द्वारा हेय तथा त्याज्य समझी जाने वाली, लघुकथा शीर्ष तले छपने वाली Flash Story व Wits अन्य आलोचकों-समीक्षकों अथवा संपादकों को प्रभावशाली महसूस हो सकती हैं; तथा हमारे द्वारा स्वीकार्य रचनाएँ त्याज्य। इस बारे में विवाद की गुंजाइश हमेशा बनी रहेगी, परन्तु लघुकथा को ‘कौंधकथा’ और ‘विलक्षण-वाक्यकथा’ से अलग रखना ही होगा।
      मैं पुनः नेपथ्य बिंदु पर आना चाहूँगा। वस्तुतः नेपथ्य वह वातायन है जिसे लेखक अपनी रचना में तैयार करता है और पाठक को विवश करता है कि वह उसमें झाँके तथा रचना के भीतर के व्यापक और गहरे संसार को जाने। कई बार मुख्य-कथा के एक या अनेक पात्र भी लघुकथा के नेपथ्य में रहते हैं। लघुकथा में उनका सिर्फ आभास मिलता है, वे स्वयं उसमें साकार नहीं होते। दरअसल, घटनाओं और स्थितियों का यह प्रस्फुटन लघुकथा के नेपथ्य में उतरे उसके पाठक के मन-मस्तिष्क में होने वाली निरन्तर प्रक्रिया है। अगर कोई रचना, जो इस प्रक्रिया को जन्म देने में अक्षम है, वह निःसंदेह अच्छी रचना नहीं हो सकती। अपने इसी गुण के कारण लघुकथा गंभीर प्रकृति के पाठक को जिज्ञासु बनाए रखने में सफल रह सकी है। इसी बात को मैं यों भी कहना चाहूँगा कि अपने समापन के साथ ही जो लघुकथा पाठक के भीतर विचार की एक श्रृंखला जाग्रत कर देने की क्षमता रखती है, वह एक सफल लघुकथा है।
      लघुकथा में नेपथ्य की उपस्थिति को जानने के बाद यह अवधारणा पूर्णतः निर्मूल सिद्ध हो जाती है कि कोई कथाकार लघुकथा लिखता है क्योंकि वह कथा को कहानी जितना विस्तार दे पाने में अक्षम है। सही बात यह है कि लघुकथाकार कथा के मात्र संदर्भित बिंदुओं पर कलम चलाता है और शेष को नेपथ्य में बनाए रखता है। यही उसका कथा-कौशल है और यही लघुकथा की प्रभावकारी क्षमता।
  •  एम-70, जैन मन्दिर के सामने, नवीन शाहदरा (उल्धनपुर), दिल्ली-110032/मो. 08826499115

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें