अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 01-04, सितम्बर-दिसम्बर 2017
कन्हैया लाल अग्रवाल ‘आदाब’
ग़ज़लें
01.
याद है हमको सताना आपका
ख्वाब में आकर जगाना आपका
मिल गई उसको पसंदीदा जगह
मेरा दिल है अब ठिकाना आपका
देखकर, फिर देखकर, ना देखना
जुल्म है नज़रें झुकाना आपका
मेरी ग़ज़लों की चुराकर डायरी
शेर उसके गुनगुनाना आपका
छत पे आकर जेठ की दोपहर में
सूखे कपड़ों को सुखाना आपका
घर की खिड़की खोलकर के झाँकना
झाँककर परदे गिराना आपका
कर न दे पैदा किसी में कुछ भरम
रेखाचित्र : बी. मोहन नेगी |
02.
गिला कैसा कोई गर बेखबर है
मुझे ही कौन सी अपनी खबर है
किनारे पर खड़े को भी भिगोती
बड़ी गुस्ताख सागर की लहर है
पटाखों की तरह बम फूटते हैं
जिधर देखो उधर पसरा कहर है
भला कैसे हो खेती में बरक्कत
मेरे गाँव में एक सूखी नहर है
हुआ दुश्वार है अब सांस लेना
फ़िजा में इस कदर फैला ज़हर है
सभी अब सिर्फ अपनी सोचते हैं
किसी को क्या किसी की अब फिकर है
यहाँ कोई नहीं है दोस्त-दुश्मन
यह चाहे संगमरमर का शहर है
- 89, ग्वालियर रोड, नौलक्खा, आगरा-282001, उ.प्र./मो. 09411652530
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