अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 01-04, सितम्बर-दिसम्बर 2017
रामस्वरूप मूँदड़ा
आकाश की परिधि के बाहर
आकाश सिर पर उठा
घूमता रहा कई दिन
तुमने कहा था मुझे चुनने हैं
सितारे अनगिन।
मैंने कहा आकाश लाया हूँ
भरलो झोलियाँ
पहले तुमने भरी मुट्ठियाँ
और पाँव से झोलियों को फैला दिया
धरती की सतह पर।
कोई आये/सितारे तोड़े
इन्हें भर दे
बाँधकर चला जाए
कोई अनजान चेहरा
तुम्हारे स्वप्निल भविष्य के लिए
बड़ी-बड़ी गठरियाँ।
बोझ महसूसा है कभी तुमने!
रेखाचित्र : विज्ञान व्रत |
कभी नहीं
और प्रतीक्षा करो
मेरे जाने के बाद
शायद कोई आ जाये
जो भर दे इन्हें फिर
जान सको तुम
आदमी का वजन।
उम्र के दिन शेष नहीं हैं इतने
थकन भरे पाँवों से
रुक गया था पड़ाव पर
आकाश गिरे मेरे सिर से नीचे
इससे पहले खिसक जाना है तुम्हें
आकाश की परिधि के बाहर
यदि जीना है।
मुझे, जहाँ तक चल सकूँगा आगे
चलना है
कर रहा हो शायद कोई और भी इंतजार
और फिर दब जाना है
इसी आकाश के नीचे।
जो घूमता रहा उठाकर सिर पर
सितारों का आकाश
तुम्हारे लिए
वह मैं ही हूँ
सिर्फ मैं ही।
- पथ 6, द-489, रजत कॉलोनी, बूँदी-323001, राज./मो. 09414926428
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