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रविवार, 2 फ़रवरी 2014

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 05-06 : जनवरी-फरवरी 2014

।। जनक छंद ।। 

सामग्री : इस अंक में श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला के जनक छंद। 


त्रिलोक सिंह ठकुरेला 


पांच जनक छंद

01.
नागफनी इतरा रही,
तुलसी के दिन लद गये,
उसकी वारी आ रही।
02.
वैर अकारण ही ठना,
रेखा चित्र : उमेश महादोषी 
जब से धन वर्षा हुई,
हर रिश्ता है अनमना।
03.
धर्म कभी कहता नही,
मन में दीवारें उठें,
विघटन कब होता सही।
04.
सबको अपनी ही पड़ी, 
कहते कलयुग आ गया, 
स्वार्थ सूझता हर घड़ी।
05.
कठपुतली सा नाचता,
मानव धन का दास बन,
मन्त्र नित नए बांचता।
  • बंगला संख्या-एल-99,रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड-307026 राज.

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