अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 3, अंक : 05-06 : जनवरी-फरवरी 2014
।। जनक छंद ।।
।। जनक छंद ।।
सामग्री : इस अंक में श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला के जनक छंद।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
पांच जनक छंद
01.
नागफनी इतरा रही,
तुलसी के दिन लद गये,
उसकी वारी आ रही।
02.
वैर अकारण ही ठना,
रेखा चित्र : उमेश महादोषी |
जब से धन वर्षा हुई,
हर रिश्ता है अनमना।
03.
धर्म कभी कहता नही,
मन में दीवारें उठें,
विघटन कब होता सही।
04.
सबको अपनी ही पड़ी,
कहते कलयुग आ गया,
स्वार्थ सूझता हर घड़ी।
05.
कठपुतली सा नाचता,
मानव धन का दास बन,
मन्त्र नित नए बांचता।
- बंगला संख्या-एल-99,रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड-307026 राज.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें