अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 3, अंक : 05-06, जनवरी-फरवरी 2014
।। बाल अविराम ।।
सामग्री : इस अंक में पढ़िए- एक लोक कथा पर आधारित श्री शशिभूषण ‘बड़ोनी’ की बाल कहानी ‘गुफा में बाघ’ तथा डॉ.महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’ की बाल कविता ‘चलो बनाये हम एक रेल’ नन्हें बाल चित्रकारों इशिता व स्तुति शर्मा के चित्रों के साथ।
शशिभूषण ‘बड़ोनी’
गुफा में बाघ
एक बार एक बाघ एक जंगल से गुजर रहा था। गाँव के कुछ गडरिये बच्चों ने बाघ को एक गुफा में घुसते हुए देखा। उन बच्चों ने झट से गुफा के ऊपर एक बड़े पत्थर को रख दिया।
तभी उधर से एक किसान गुजर रहा था। बाघ ने किसान को देखा। बाघ ने किसान से विनती की कि वह उसे गुफा से बाहर निकाले। बाघ किसान के आगे रोया और गिड़गिड़ाया। किसान को उस पर दया आ गयी। किसान ने तब बाघ को गुफा से बाहर निकाल दिया। माँद के बाहर आते ही बाघ ने कहा कि उसे भूख लगी है.... मुझे तो आदमी को खाना अच्छा लगता है.... और अब तो मैं तुम्हें ही खाना चाहता हूँ....।
किसान घबरा गया। उसने कहा- बाघ भाई मैंने तो तुम्हें बचाया है और तब तुम ही मुझे खाना चाहते हो.... यह तो सरासर गलत बात है.... उन दोनों की यही बातें हो रही थी कि तभी वहाँ एक सियार आ पहुँचा। किसान ने सियार को रोका और उसे पूरा किस्सा सुनाया तथा कहा, ‘‘सियार महाराज, देखो मैंने इस बाघ को बचाया है
और अब यह मुझे ही खाने को तैयार हो गया है.... अब आप ही इंसाफ करो....।’’
चित्र : इशिता |
सियार ने पूरी बात सुनी और कहा, ‘‘अच्छा ठीक है। तब पहले वहाँ चलो जहाँ पर यह घटना हुई...।’’ तीनों उधर चल पड़े।
वहाँ पहुँच कर सियार ने बाघ से कहा, ‘‘मैं तो विश्वास ही नहीं कर सकता कि इस छोटी सी गुफा में तुम घुस गये होंगे.... भाई यह तो बहुत छोटी है.... तुम इसमें कैसे घुसे? भाई तुम तो सरासर झूठ बोल रहे हो।’’
बाघ को गुस्सा आ गया। उसने तमतमाते हुए कहा, ‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। अच्छा लो मैं अभी इस गुफा में घुस कर दिखाता हूँ... और बाघ जल्दी से जाकर उस गुफा में पुनः घुस गया।
तभी सियार ने किसान से चुपके से कहा कि अब तुम जल्दी से गुफा के ऊपर पत्थर रख दो। और फिर बाघ को बाहर निकालो न निकालो... यह तुम्हारी मर्जी है, मैं तो चला.... और सियार तीर की तरह वहाँ से भाग गया।
{बाल कहानी संग्रह ‘लौटती मुस्कान’ से साभार}
- आदर्श विहार, ग्राम व पोस्ट- शमशेरगढ़, देहरादून (उ.खंड)
डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’
चलो बनाये हम एक रेल
आओ पूजा खेले खेल,
आओ प्रीति खेले खेल।
सब पकड़े पीछे से सबको,
राजू इंजन बन करके जब,
आगे आगे जाएगा।
नीरज लाल हरी झण्डी ले,
सीटी तेज बजायेगा।
गाड़ी जब फिर कहीं रुकेगी,
धीरज फिर डालेगा तेल।।2।।
रेल हमारी चल-चल करके,
देखो पहुँच गयी है दिल्ली।
राह में देखा बहुत मिले थे,
बन्दर भालू चीते बिल्ली।
सब चाहेंगे बैठूँ इसमें,
कितनी प्यारी है यह रेल।।3।।
{बाल कविता संग्रह ‘हाल सुहाने बचपन के’ से साभार}
- पूजाखेत, पोस्ट-द्वाराहाट, जिला अल्मोड़ा-263653 (उत्तराखंड)
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