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शनिवार, 22 सितंबर 2018

किताबें

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  07,   अंक  :  11-12,   जुलाई-अगस्त 2018 


{लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है कृपया समीक्षा भेजने के साथ पुस्तक की एक प्रति (एक से अधिक नहीं) हमारे अवलोकनार्थ डा. उमेश महादोषी, 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कालौनी, बदायूं रोड, बरेली, उ.प्र. के पते पर अवश्य भेजें। समीक्षाएँ ई मेल द्वारा कृतिदेव 010 या यूनिकोड मंगल फॉन्ट में वर्ड या पेजमेकर फ़ाइल के रूप में ही भेजें।स्कैन करके या पीडीएफ में भेजी रचनाओं का उपयोग सम्भव नहीं होगा। बिना पुस्तक भेजे समीक्षा-प्रकाशन संभव नहीं होगा।} 


स्व. (डॉ.) सतीश दुबे








अनुभूत यथार्थ-बोध तथा भावों की कविताएँ
                 {यह समीक्षा डॉ. दुबे साहब ने जीवन के कुछ अन्तिम महीनों में लिखी थी।}
          साहित्यिक पटल पर कविता को विशेष दर्जा मिलने के पश्चात उसके रूप-स्वरूप के तात्विक मानदंड निर्धारित करने के लिए अनेक आन्दोलन होते रहे हैं। कविता के शैलीगत बदलाव केन्द्र में रखकर बौद्धिक बहस मुबाहिसों का लक्ष्य विविध आयामों के माध्यम से उसे विशेष पहचान देता रहा है। ऐसी समस्त हलचलों से वाकिफ होने के बावजूद एक बड़ा वर्ग हमेशा
ऐसा मौजूद रहा जो कविता को कविता होने के रूप में परिभाषित करता रहा। ऐसी कविता ने अपने शब्दों की सहज अभिव्यक्ति में शिल्प को तराशकर कविताएँ रचीं। इस रचाव में परम्परा को नहीं, ताजगी को महत्व दिया जाकर उसे समकालीन चौखट में बुना गया। कमलेश चौरसिया की रचनाएँ करीबन इसी लीक पर रची होने से इन्हें उस वर्ग में सम्मिलित किए जाने में किसी प्रकार का गुरेज नहीं होना चाहिए।
            ‘पानी का पाट’ की 68 रचनाएँ बुनते हुए कमलेश ने संवेदनशीलता का दामन हमेशा थामे रखा है। इन्होंने अपनी रचनाशीलता में किसी प्रकार का दावा नहीं किया है। बड़े ही सहज शब्दों में है इनका स्टेटमेंट कि ‘‘जिन बिन्दुओं का हम स्पर्श करना चाहते हैं वे अवर्णनीय तथा वर्णनातीत हैं; जिन्हें शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है, एक चित्र खींचने तथा उस ओर जाने का मात्र रेखांकन प्रयास हो सकता है।’’
      साहित्य की अन्य विधागत शैली की तरह कविता का उद्देश्य महज शब्दों की बाजीगरी नहीं, जीवन के विभिन्न सरोकारों से गहरे जुड़कर उसे सृजनात्मक स्तर पर रूपायित करना है। इसीलिए कविता की विषय-वस्तु के केन्द्र में परिवार, रिश्तों की अहमियत, सामाजिक संबंध, अपने इर्द-गिर्द के समस्त परिदृश्य, समय की यथार्थ स्थितियों जैसे बिन्दु होते हैं। यही नहीं, कविता व्यवस्थावादी विसंगतियों और इसके पैरोकारों पर बेबाक टिप्पणी कर उनके नकाबी चेहरे को उजागर करती है। फख्र है कि कमलेश चौरसिया ने ‘पानी का पाट’ संग्रह की कविताओं में इन तमाम बिन्दुओं को विभिन्न तेवरों के साथ रूपायित किया गया है। कमलेश ने बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से इक्कीसवीं सदी तक जीवनशैली में तेजी से आए बदलाव को विशेष रूप से रेखांकित किया है। वे नई पीढ़ी की भौतिकवादी तथा आत्मकेन्द्रित सोच पर चेतस और सजग रचनाकार की भूमिका का निर्वाह करते हुए उसके संबंधों पर होने वाले प्रभाव पर सिद्दत के साथ शब्दों का वितान रचती हैं। 
      इन कविताओं में एक ओर बौद्धिक चिंतन एवं विसंगतियों, विद्रूपताओं के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त हुआ है, वहीं दूसरी ओर मन के स्पर्श कर लेने वाले कोमल भावों का चित्रण। इन्हें रचते हुए कमलेश का नारी मन पूरी संवेदनशीलता के साथ उभरकर हमसे रूबरू होता है। प्रेम, सहयोग, सौहार्द से लबालब ऐसी रचनाएँ हमें अलग ही भावलोक में विचरण का आह्वान करती हैं। तकरीबन ऐसी ही अनुभूति प्रकृति और उसके सौंदर्य की झलकियों के दौरान होती है। प्रेम व प्रकृति जीवन के ऐसे शाश्वत सत्य हैं जिनकी भावनात्मक ताजगी कभी खत्म नहीं होती।
      इन कविताओं की सम्प्रेष्य-शैली कमलेश ने स्वयं ईजाद की है। वस्तु की प्रकृति चाहे उसका रूप कोई भी हो धीमे-धीमे शब्द योजना को साधकर करती है। उनकी सपाटबयानी में भी सांकेतिकता और शिल्प का समन्वय है। अन्त के साथ ही पाठक या तो रचना से सोच-संवाद करने लगता है या हृदयग्राही चित्रण में अपने मन-भावों को तिरोहित कर देता है। शब्दों की अर्थवत्ता मीनाकारी इन कविताओं की विशेषता है।
      किसी रचनाकार के प्रथम संग्रह में सामान्यतः वह प्रौढ़ता, गम्भीरता, अर्थवत्ता या सम्प्रेष्य क्षमता नहीं होती, जो कमलेश के इस संग्रह में दृष्टिगोचर होती है। इसीलिए यह संग्रह कविताओं की श्रेष्ठ रचनाओं के बीच शुमार होने का दावा करता है।
पानी का पाट : कविता संग्रह : कमलेश चौरसिया। प्रकाशक : विश्व हिन्दी साहित्य परिषद, एडी-94 डी, शालीमार बाग, दिल्ली-88। मूल्य : रु. 250/- मात्र। संस्करण: 2016।


  • परिवार संपर्क: श्रीमती मीना दुबे, 766, सुदामा नगर, इन्दौर-452009, म.प्र. 

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