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शनिवार, 22 सितंबर 2018

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  07,   अंक  :  11-12,   जुलाई-अगस्त 2018 


।।कथा प्रवाह।।




भगीरथ 




चेहरा                                              
        आयशा शीशे में निहार रही है, अपने आपको। भौहों पर पेंसिल फेर ली। हाँ, अब कुछ बात बनी। लेकिन, नहीं लिपिस्टिक जरा सी फैल गई, उसे पौंछ डाला, रंग जरा गहरा है, इसमें तो वह सोफिस्टिकेटेड नहीं लगेगी। हल्का गुलाबी ओठ के रंग से मैच करता ही ठीक रहेगा। उसने देखा गालों की हड्डियाँ कुछ ज्यादा उभरी हैं, बेहतर होगा उन पर रूज़ फैला ले तो यही शिखर चौंधिया देंगे। जूड़े को सम्भालते वक्त ख्याल आया कि यह स्टाइल बहुत पारम्परिक है, और ध्यान आकृष्ट करने में बिल्कुल नाकाम रहेगी। बेहतर होगा मॉड स्टाइल अपना ले, पर इसके खतरे भी हैं; फिर तो लोगों के ध्यान के केन्द्र में रहेगी। तब गली-कूचे, बस-स्टेंड कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर पायेगी। इससे तो अच्छा है, हल्के से बालों को छितरा लिया जाये, ताकि उनमें एक तरह की उन्मुक्तता रहती है। और नारी में उन्मुक्तता कौन नहीं पंसद करता, बालों में कंघी फेरते, उसने एक झटके से बाल ऊपर फेंके, यह क्या! उसे तीन-चार बाल अपनी पूरी लम्बाई में धूप से उजले नजर आये, डाई करने की बजाय उन्हें उखाड़ फैंका जाये। आखिर कुछ संघर्ष के बाद बाल उखाड़ फैंके, मानो उम्र को दरकिनार कर दिया हो ।
      हम हमेशा  युवा और सुन्दर दिखना चाहते हैं। चेहरा ही हमारी पहचान बनकर रह गया है। आयशा यह जानती है; फिर भी उसने आँखों के काजल को जरा गहरा कर दिया, ताकि आँखें बड़ी और सुन्दर दिखाई पड़ें और जरा चंचल भी प्रतीत हो। आखिरी नजर डालते उसे महसूस हुआ कि वह अब आयशा नहीं रही। 

  • 228, नयाबाजार कालोनी रावतभाटा, राजस्थान पिन- 323307

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