अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2018
{लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है कृपया समीक्षा भेजने के साथ पुस्तक की एक प्रति (एक से अधिक नहीं) हमारे अवलोकनार्थ डा. उमेश महादोषी, 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कालौनी, बदायूं रोड, बरेली, उ.प्र. के पते पर अवश्य भेजें। समीक्षाएँ ई मेल द्वारा कृतिदेव 010 या यूनिकोड मंगल फॉन्ट में वर्ड या पेजमेकर फ़ाइल के रूप में ही भेजें।स्कैन करके या पीडीएफ में भेजी रचनाओं का उपयोग सम्भव नहीं होगा। बिना पुस्तक भेजे समीक्षा-प्रकाशन संभव नहीं होगा। मुद्रित अविराम साहित्यिकी में समीक्षाओं का प्रकाशन फ़िलहाल स्थगित कर दिया गया है।}
डॉ. उमेश महादोषी
नई पीढ़ी की प्रेमाभिव्यक्ति की कहानियाँ
नई पीढ़ी के कथाकारों में अभिव्यक्ति को पाठकों तक ले जाने की तीव्र आकांक्षा आज के संसाधन सम्पन्न युग के अनुरूप है। अवसर भी आसानी से उपलब्ध हैं, ऐेसे में नए रचनाकारों के संग्रह काफी संख्या में आ रहे हैं। ज्योत्स्ना ‘कपिल’ ने लघुकथा के साथ कहानी के क्षेत्र में भी पदार्पण किया। लघुकथा से पहले कहानी-संग्रह लाने का निर्णय अच्छा है। 50-60 लघुकथाओं के सापेक्ष सात कहानियों में उनकी क्षमताओं की कहीं अधिक मजबूत गवाही है। ‘प्यासी नदी बहती रही’ में उनकी सात में से छै कहानियों के केन्द्र में प्रेमाभिव्यक्ति है। प्रेमाभिव्यक्ति से इतर एक मात्र कहानी ‘वो चेहरा’ भूत-प्रेत में विश्वास रखने वालों पर बेहद सरल अन्दाज में किया गया तंज है।
‘टीस’ में एक लेखक और उसकी फैन एक महिला पाठक के मध्य पनपे भावुक प्रेम की अभिव्यक्ति है। यह
एक यथार्थपरक रचना है, लेकिन इस तरह के भावुक प्रेम की सीमाओं को भी लेखिका ने अपनी रचनात्मकता में शामिल किया है। संग्रह की शीर्षक कथा ‘प्यासी नदी बहती रही’ में प्रेम में त्याग, उपेक्षा और अन्ततः उसके अहसास को चित्रित किया गया है। यह सकारात्मक पारिवारिक प्रेम का प्रभावशाली चित्र है। ‘गंधहीन रजनीगंधा’ में प्रेम के नाम पर कार्पोरेट कल्चर का लेखा-जोखा है। इसे एक प्रेम कथा की वजाय कार्पोरेट कल्चर में व्याप्त व्यापारिक ईर्ष्या की कथा कहा जाये तो अधिक उचित होगा, जहाँ किसी की प्रतिभा का लाभ उठाने के साथ उसके शोषण की प्रवृत्ति स्थापित है। ‘ख्वाहिशों का खण्डहर’ में प्रेम में छलावे का रूप देखने को मिलता है। यह अत्यधिक भावुक विश्वास का परिणाम है। प्रेम में सामान्यतः विश्वास का अतिरेक धोखे का आधार तैयार करता है। प्रेम का यह रूप समाज का हिस्सा बन चुका है। यह भावुक प्रेम की कमजोरी ही है कि देख-समझकर भी विश्वास का अतिरेक कम नहीं होता। आये दिन लड़कियाँ छली जा रही हैं। ‘कशिश’ में एक सकारात्मक प्रेम का रूप दिखाया गया है। कथानायक अविनाश का नीरा के प्रति प्रेम वास्तविक और गहरा है, लेकिन वह स्वयं को नीरा के योग्य बनाने की कोशिश में अपने प्रेम को व्यक्त करने में इतनी देर कर देता है कि तब तक नीरा की शादी कहीं और तय हो जाती है। भले आधुनिक दृष्टि इस कथा में अभी भी अपने परिपक्व स्वरूप तक नहीं पहुँच सकी है, लेकिन वर्तमान कालखण्ड में यथार्थ इसी बिन्दु के इर्द-गिर्द स्थित है। एक बार शादी तय हो जाने के बाद अपने परिवार के मान-सम्मान का प्रश्न सर्वोपरि माना जाता है। परिवार का समर्थन किसी लड़की के पक्ष में तय हो चुके रिश्ते को उसके प्रेम के लिए तोड़ देने की स्थिति तक सामान्यतः नहीं जा पाता। संग्रह की अंतिम कहानी ‘कोई नाम न दो’ सबसे लम्बी कहानी तो है ही, इसे इसी संग्रह की कहानी ‘टीस’ का विस्तार भी कहा जा सकता है। इस कथा में बार-बार यह प्रश्न उठता है, क्या शारीरिक आकर्षण के बिना प्रेम नहीं हो सकता और क्या बिना नाम दिए प्रेम का रिश्ता भावनात्मक रूप से बनाया और बढ़ाया नहीं जा सकता? प्रश्न अपनी जगह उचित है, लेकिन इस कथा में दर्शायी गई ईमानदारी और संयम का निर्वाह कितनी बार वास्तव में हो पाता है? जहाँ कदम-कदम पर ‘ख्वाहिशों का खण्डहर’ दोहराने का जोखिम मौजूद हो, वहाँ कुछ मर्यादाओं की सीमाओं पर विचार करने से किसी को आहत नहीं होना चाहिए। हाँ, एक सकारात्मक विमर्श के प्रस्ताव के लिए इस कहानी को अच्छे अंक दिए जा सकते हैं।
निसंदेह नई पीढ़ी की अपनी प्रेम दृष्टि है, जिसकी कुछ झलक इन कथाओं में दिखाई देती है। ज्योत्स्ना ‘कपिल’ ऊर्जावान कथाकार के रूप में उभर रही हैं, उनके व्यक्तित्व की ऊर्जा उनकी रचनाओं में भी है। सामाजिक आवश्यकताओं के फलक की समग्रता को पहचानते हुए विषय-वैविध्य के साथ वह आगे बढ़ें, कथाजगत को उनसे काफी कुछ मिलने की उम्मीद है।
प्यासी नदी बहती रही : कहानी संग्रह : ज्योत्स्ना ‘कपिल’। प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-30। मूल्य : रु. 220/- मात्र। सं. : 2017।
- 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें