आपका परिचय

शनिवार, 22 सितंबर 2018

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  07,   अंक  :  11-12,   जुलाई-अगस्त 2018 


।।कथा प्रवाह।।


स्व. पारस दासोत





भूख

     अपने दौड़ते हुए बेटे को पकड़कर,...
     वह बोली- ‘‘नाश मिटे! तुझको मैंने कितनी बार बोला, ‘‘दौड़ा मत कर, कूदा मत कर! तू समझता क्यों नहीं!’’
     यह सब देख-सुनकर उसकी पड़ौसिन बोली-
     ‘‘अरी बहिन, बच्चा है, दौड़ने-कूदने दो! बहिन, क्या तुम्हें मालूम नहीं, दौड़ने-कूदने से भूख अच्छी लगती है! स्वास्थ्य अच्छा रहता है!’’
     .......
     वह, अपने बेटे को, पड़ोसिन से कुछ न कहते हुए, इस तरह पीट रही थी, मानो वह, उसे समझा रही हो-
     ‘‘भूख, दौड़ने-कूदने से अच्छी नहीं, अधिक लगती है!’’

आइ लव यू

     ‘‘ब्यूटी पार्लर पर अपना मेकअप होने के बाद,...
     उसने, जैसे ही इस बार अपने को आइने में देखा, विस्मय स्वर से बोली- ‘‘ये ऽ ऽ....! ये मैं! नहीं, यह मैं नहीं, मेरी सौतन है।’’
     और उसने, शीघ्र ही अपना मेकअप वॉश-बेसिन पर पहुँचकर पोंछ डाला।
     मैंने देखा-
     वह, आइने में उभरे अपने अक्श को, ‘आइ लव यू’ बोलकर चूम रही थी।


  • परिवार संपर्क : श्री कुलदीप दासोत, प्लॉट नं.129, गली नं.9 (बी), मोतीनगर, क्वींस रोड, वैशाली, जयपुर-301021 (राज.)

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