अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2017
शिवानन्द सिंह सहयोगी
नवगीत
01. सुनो बुलावा!
सुनो बुलावा!
क्या खाओगे!
घर में एक नहीं है दाना
सहनशीलता
घर से बाहर
गई हुई है
किसी काम से
राजनीति को
डर लगता है
किसी ‘अयोध्या’
‘राम-नाम’ से
चढ़ा चढ़ावा!
धरा पुजारी!
असफल हुआ वहाँ का जाना
आजादी के
उड़े परखचे
तड़प रही है
सड़क किनारे
लोकतंत्र का
फटा पजामा
टाँका के है
पड़ा सहारे
रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा |
वोटतंत्र यह!
मनमुटाव का सगा घराना
मिला पलायन
माला लेकर
राजतन्त्र के
चित्रकूट पर
भुखमरी का
पेट छ्छ्नता
राजभवन के
घने रूट पर
बँधा कलावा!
जनसेवा का!
जाना है बस क्षितिज उठाना
02. लिफाफा भूल आया
आज खिड़की पर किसी का
एक फेंका फूल आया
लगा धरती के लिये है
कान का कनफूल आया
बादलों का झुंड अभिनव
बूँद की बारात में है
इन्द्रधनुषी एक गजरा
सज रहा सौगात में है
धूप को डोली चढ़ाने
झींसियों का झूल आया
कुछ गुलाबों सी टहनियाँ
हैं अहमदाबाद में भी
यह खबर अमरावती की
रेखाचित्र : बी. मोहन नेगी |
बिन बुलावा बिन बताये
जेठ में बैतूल आया
नये किसलय से चिपटकर
बहुत खुश आकाश-जल है
मौन है बेसुध पड़ा है
सोच में कुछ द्रवित पल है
चाहता कुछ नेग देना
है लिफाफा भूल आया
- ‘शिवाभा’, ए-233, गंगानगर, मवाना नगर, मेरठ-250001, उ.प्र./मो. 09412212255
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