अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2017
रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’
नवगीत
01. परिपाटी
कुरुक्षेत्र हो
पानीपत या
हो हल्दीघाटी
सिर्फ हमारे ही
शहीद होने की
परिपाटी।
खेतों में मौसम
से मरते,
रण में वाणों से
राजाजी को मिले
अमरता
अपने प्राणों से।
सिंहासन के पाये हों
या सिंहपौर की सीढ़ी
अपनी ही अस्थियाँ
सदा
बनती हैं सक्की माटी।
बंजारे सपने लेकर
हम/आजीवन भटके,
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
सागर, शिखर फलाँगे
फिर भी
कभी नहीं अटके
चले सतत हम
लेकिन मंजिल मिली सदा उनको
छाया जिनकी
बहुत बड़ी है
काया है छोटी
वहाँ हथेली पर सरसों
प्रतिपल उगती देखी
यहाँ भूख की सुरसा
आंगन में जगती देखी
राजमहल का शील
हिमालय से भी ऊँचा है
गुजराती ताला है
लेकिन
अरहर की टाटी
चक्कर पर चक्कर
चक्कर पर
नये-नये चक्कर
राजमहल की ईंट-ईंट में
है तिलिस्म का घर
बनकर कुम्भज ऋषि
सोखें हैं
सब सुविधा-सागर
तेरे-मेरे हिस्से में
है सिर्फ मही घाटी।
02. अम्मा सी
यज्ञधूम सी पावन घर में
बैठी है चुपचाप उदासी।
ज्ञान पीटने गया सवेरे
लदा-फँदा बस्ते से बचपन
हबड़-तबड़ में घनी व्यस्तता
लाद पीठ पर भागा यौवन
पीछे छूट गयी है
घर में
शुभकामना बाँटती खासी
साँझ ढले
छायाचित्र : आकाश अग्रवाल |
घर में आयीं थकीं थकानें
अस्त-व्यस्त बस्ता
सूखा मुँह
थकन, पसीना औ मुस्कानें
चाय-चूय, किस्से-गप्पें धुन
हँसी-कहानी और उबासी
रोज-रोज की यही कहानी
कहती हैं
छत से दीवारें
थोड़े से सुख ज्यादा दुःख हैं
पर/ये महानगर की मारें
पाँव दबाता घूँघट गायब
पर आशीष वही अम्मा सी
- 86, तिलक नगर, बाईपास रोड, फ़िरोज़ाबाद-283203 (उ.प्र.)/मो. 09412316779
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