अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2017
सत्य शुचि
आगंतुक का इन्तज़ार
मोबाइल पर बेटे का मैसेज था और वह किंचित कहीं खो-सा गया। पर तुरन्त ही उसने काम में व्यस्त पत्नी का ध्यान भंग किया- ’’....अरे जल्दी करो!’’
‘‘क्यों क्या हो गया?’’ पत्नी ने चिंता जताई।
‘‘बेटा आ रहा है...!’’ उसने अवगत कराया।
‘‘तो आने दो।’’ पत्नी ने सहज में लिया।
‘‘बेटे के संग नई बहू भी है...’’ प्रफुल्लित-सा दिखते हुए वह बोला।
‘‘क्या...!’’ विस्मय से वह ठगी-सी रह गई।
‘‘हाँ, मैं कह रहा हूँ, फुर्ती से नीचे चलना है।’’ वह कमरे में इधर-उधर टहलने लगा।
‘‘नीचे जाकर क्या करेंगे हम...?’’ पत्नी ने जिज्ञासा प्रकट की।
‘‘बिल्डिंग के मेन गेट तक हमें पहुँचना है।’’
‘‘क्या...! बेटा-बहू घर में नहीं आयेंगे...?’’
‘‘उनके पास वक्त नहीं है। मेने गेट से ही हमारा आशीर्वाद लेकर वापस...’’
‘‘आखिर मैं आपसे पूछती हूँ, इस ज़माने को क्या होता जा रहा है?’’
‘‘तुम फिजूल की बकवास छोड़ो, यार!... जमाने के साथ-साथ तुम भी कदम मिलाती जाओ तो कभी दुःख महसूस नहीं करोगी मेरी तरह, समझीं...!’’
‘‘हाँ...! हमें क्या? जिसमें औलाद की राजी-खुशी, उसी में हमारी...’’
‘‘अब लेट क्यों हो रही हो...?’’
‘‘लेट कहाँ....चल तो रही हूँ।’’
और वे मेन गेट पर पलक-फावड़े बिछाए आगन्तुक के इन्तजार की घड़ियाँ गिनने लगे।
- साकेत नगर, ब्यावर-305901, राज.
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