अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2017
कमलेश चौरसिया
गुलाब की सुगंध
आज डॉ. उर्मिला का वर्थ-डे है। रात बारह बजे से ही बधाइयों के एसएमएस आने लगे थे। कई अपनों के मोबाइल कॉल भी आये। फेसबुक पर भी बधाइयों और धन्यवाद ज्ञापन का सिलसिला पूरे दिन चलता रहा। लेकिन इस समय उसे सब कुछ अधूरा-सा लग रहा था। मन बेचैन-सा था। आँखों में सूनेपन की जकड़न उसके उत्साह और ऊर्जा को सोखे जा रही थी। सोफे से उठने की इच्छा नहीं हो रही थी।
आज जल्दी-जल्दी पेसेन्ट्स को अटेंड करके बड़े उत्साह के साथ वह समय से पहले ही घर आ गई थी। उम्मीद थी कि कम से कम आज तो पतिदेव भी हॉस्पीटल से फ्री होकर वादे के मुताबिक जल्दी घर आ जायेंगे। लेकिन...।वह क्लीनिक से आकर सोफे पर बैठी ही थी कि मधुर संगीत के साथ मोबाइल स्क्रीन पर पतिदेव की फोटो चमक उठी थी। ऑन करते ही आवाज आई- ‘‘सॉरी डार्लिंग, आज भी मैं जल्दी नहीं आ पाऊँगा। एक मेडीकल कंपनी के एम. डी. को समय देना पड़ गया। तुम्हें थोड़ा इन्तजार करना होगा। लेकिन तुम तैयार रहना। आज हम तुम्हारे पसंदीदा रेस्तरां में डिनर के साथ तुम्हारा वर्थ-डे सेलीब्रेट करेंगे।’’ और बिना उसकी प्रतिक्रिया जाने फोन काट दिया गया था। वह सोचती ही रह गई... क्या पेशे के आगे रिश्ते की इतनी ही अहमियत...!
अचानक डोरबेल की ट्रिंग-ट्रांग से उसकी तन्द्रा भंग हुई। जैसे-तैसे जाकर दरवाजा खोला तो भौचक्की रह गई। ‘‘हैप्पी वर्थ-डे, डियर भाभी!’’ कहते हुए सामने ननद-ननदोई खड़े थे। ननद उसे बाहों में भरकर गले लग गई। अचानक मिले इस अपनेपन और ननदोई के हाथों में केक और गुलाबों के गुलदस्ते से आती सुगंध ने उसकी आँखों के सूनेपन की जकड़न को उखाड़कर फेंक दिया था। ऊर्जा आौर उत्साह की तरंगें उसके तन-मन में संचरित होने लगी थीं।
- गिरीश-201, डब्ल्यू.एच.सी. रोड, धरमपेठ, नागपुर-440010 (महाराष्ट्र)/मो. 08796077001
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