अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 07-08, मार्च-अप्रैल 2018
।। कथा प्रवाह ।।
(स्व.) सतीश दुबे
हमारे आगे हिन्दुस्तान
शाम के उस चिपचिपे वातावरण में मित्र के साथ वह तफरीह करने के इरादे से सड़क नाप रहा था। उनके आगे एक दम्पति चले जा रहे थे। पुरुष ने मोटे कपड़े का कुरता-पायजामा तथा पैरों में चप्पल डाल रखे थे तथा स्त्री एक सामान्य भारतीय महिला की वेशभूषा में थी। उसकी निगाह जैसे ही दम्पति की ओर गई, उसने मित्र को बताया, ‘‘देखो! हमारे आगे हिन्दुस्तान चल रहा है।’’
‘‘क्या कहना चाहते हो? मुझे तो नहीं लगता है कि ये एम.एल.ए., भू.पू. मंत्री, पूँजीपति या नौकरशाह में से कोई हों।’’
‘‘ऊँ-हूँ, तुमने जिनके बारे में सोचा, उनमें से यदि कोई ऐसे चहलकदमी करें तो उनकी नाक नहीं कट जाएगी!’’
‘‘फिर तुम कैसे कह रहे हो कि हमारे आगे हिन्दुस्तान चल रहा है?’’ मित्र ने तर्क की मुद्रा में आँखें घुमाई।
‘‘यह तो वे ही बताएँगे, आओ मेरे साथ।’’
‘‘वे दोनों कुछ दूरी से उनके पीछे-पीछे चलने लगे। उन्होंने सुना, पत्नी पति से कह रही थी, ‘‘दोनों बच्चों को कपड़े तो सिलवा ही दो। बाहर जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता। कुछ भी खाते हैं तो कोई नहीं देखता पर कुछ भी पहनते हैं तो सब देखते हैं। इज्जत बना के रहना तो जरूरी है ना!’’
उन्होंने देखा, पत्नी मन्द-मन्द मुस्करा रहे पति की ओर ताकने लगी है। पति की उस मुस्कराहट में सचमुच हिन्दुस्तान नजर आ रहा था।
- परिवार संपर्क : श्रीमती मीना दुबे, 766, सुदामा नगर, इन्दौर-452009 (म.प्र.)
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