अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 07-08, मार्च-अप्रैल 2018
।। कथा प्रवाह ।।
उमेश मोहन धवन
भूख
‘‘हरप्रीते जरा रोट्टी दे दे फटाफट, भूख अब बरदाश्त नहीं हो रही।’’
‘‘क्या बात है दार जी, आज सात बजे ही भूख लग गयी, रोज तो आप रात नौ बजे तक खाते हो।’’
‘‘पता नहीं, आज दोपहर को थोड़ा कम खाया था न, शायद इसीलिये। इतवार को सारा दिन घर पर रहो तो रोटीन ही बिगड़ जाता है। चंचल पुत्तर दिखायी नहीं दे रही, आगे वाले कमरे में है क्या? उसे बुलाना तो जरा।’’
‘‘नहीं जी, वह तो अपनी सहेल्ली के घर गयी है। दोपहर तीन बजे गयी थी, कहती थी कोई फंक्शन है वहाँ। किसी का जनम दिन होगा। कहकर गयी थी कि छः बजे तक आ जायेगी पर सात बज गये, आयी नहीं अभी तक। चलो कोई नहीं, आ ही जायेगी। फंक्शनों में देर-सवेर तो हो ही जाती है। ये लो जी आप खाना खाओ, आपकी पसंद की सब्जी बनायी है।’’
‘‘अभी जरा रहने दे खाना थोड़ी देर। अभी तो भूख बड़े जोर की लग रही थी पर पता नहीं अचानक ऐसा लग रहा है कि जैसे भूख मर सी गयी हो।’’
सरदार जी ने खाने की थाली से मुँह घुमा लिया और दरवाजे की तरफ देखने लगे।
- 13/34, परमट, कानपुर-204001 (उ0 प्र0)/मो. 09839099287
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें