अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 07-08, मार्च-अप्रैल 2018
।। कथा प्रवाह ।।
पूरन सिंह
हाँ, यही प्यार है
जब से होश संभाला तो पिता से हमेशा एक ही बात सुनी- ‘‘बेटा, अपना उत्तरदायित्व समझो।’’
माँ जब भी हाथ उठातीं, आशीष ही देतीं।
मित्रों से बात होती तो वे हमेशा ही कहते- ‘‘विश्वास ही तो है जो हमें नई ऊर्जा देता है।’’
पाठशाला से कॉलेज तक गुरुजी हमेशा कहते- ‘‘अनुशासन ही तुम्हारे जीवन की कुंजी है।’’
लेकिन कल जब तुम मिलीं तो तुमने कुछ कहा नहीं, सिर्फ अपनी हथेली मेरी ओर बढ़ा दी। और मुझे देखो, मैंने उस पर माँ, पिता, मित्रों और गुरुजी की कही वे सारी बातें लिख दी तो तुम खिलखिलाकर हँस दी और कहने लगी- ‘‘हाँ, यही तो प्यार है।’’
- 240, बाबा फरीदपुरी, वेस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली-110008/मो. 09868846388
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें