अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 4, दिसम्बर 2012
।।जनक छन्द।।
सामग्री : विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’ के पाँच जनक छंद।
विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’
पाँच जनक छन्द
1.
ना हृदय में प्यार है
ना परहित की भावना
धरती पर वह भार है
2.
सर्दी का भय रूप है
सूरज की किरणें स्वयं
ढूंढ़ रहीं ‘गिरि’ धूप है
3.
प्रेम जगत का सार है
यह जग चलता प्रेम से
प्रेम जगत आधार है
4.
स्वारथ भैंसें जब कभी
घुस जातीं उर ताल में
मन मैला करतीं सभी
5.
मेघ नदी जाते जहाँ
उपकारी ये हर जगह
भेद करें ये कब कहाँ
।।जनक छन्द।।
सामग्री : विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’ के पाँच जनक छंद।
विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’
पाँच जनक छन्द
1.
ना हृदय में प्यार है
ना परहित की भावना
धरती पर वह भार है
2.
सर्दी का भय रूप है
सूरज की किरणें स्वयं
ढूंढ़ रहीं ‘गिरि’ धूप है
3.
रेखांकन : के. रविन्द्र |
यह जग चलता प्रेम से
प्रेम जगत आधार है
4.
स्वारथ भैंसें जब कभी
घुस जातीं उर ताल में
मन मैला करतीं सभी
5.
मेघ नदी जाते जहाँ
उपकारी ये हर जगह
भेद करें ये कब कहाँ
- मु. बोदिया, पोस्ट मादलदा, तह. गढ़ी, जिला बांसवाड़ा-327034 (राजस्थान)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें