अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 04, दिसम्बर 2012
सामग्री : गोविन्द चावला ‘सरल’ व रमेश मनोहरा की हास्य एवं व्यंग्य का पुट लिए कविताएँ।
गोविन्द चावला ‘सरल’
कहाँ मिलता है.....
आपकी बगल में हो सकता है गीत सुनाने वाला।
कहाँ मिलता है मगर आज हँसाने वाला?
सोम रस पी गए राजा भोज के भिखारी भी
हमें नहीं मिलता कोई, ठर्रा पिलाने वाला।
आपका रंग भी मोतियों सा निखर जाएगा
बहुत जल्दी हूँ मैं, साबुन वो बनाने वाला।
मरीज पूछता है, डाक्टर मुझे खुजली क्यों है?
यह पूछता है साल में इक बार नहाने वाला।
न जाने कौन ले गया, मेरे गधे के सर से सींग
बहुत परेशान है नत्थू धोबी लुध्याने वाला।
अब न घबराएँ आपके कष्ट हैं मिटने वाले
गला दबाना सीख रहा है, पाँव दबाने वाला।
अरे हम हैं न, उँगली निकालने के लिए
ढूँढ़कर लाओ कोई उँगली फँसाने वाला।
सभी खाते हैं मुझे भगवान बचाओ, गुड़ ने कहा
बोले भगवान, भाग जा, मैं भी हूँ तुम्हें खाने वाला।
मैं भी तो चैन से सो जाता ‘सरल’ तुम जैसे
काश! मिल जाता कोई नींद चुराने वाला।
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रमेश मनोहरा
गहरा नाता
पहले तो उसने
उसके मन को टटोला
फिर धीरे से
बाबू के पास आकर बोला
रिश्वत का
क्यों बढ़ाया रेट?
जब कि खाली है
हमारा पेट
बाबू धीरे से मुस्काया
फिर यूँ समझाया-
रिश्वत और महंगाई का
गहरा नाता है
महँगाई से ही
रिश्वत की दर को
आँका जाता है
।।व्यंग्य वाण।।
सामग्री : गोविन्द चावला ‘सरल’ व रमेश मनोहरा की हास्य एवं व्यंग्य का पुट लिए कविताएँ।
गोविन्द चावला ‘सरल’
कहाँ मिलता है.....
आपकी बगल में हो सकता है गीत सुनाने वाला।
कहाँ मिलता है मगर आज हँसाने वाला?
सोम रस पी गए राजा भोज के भिखारी भी
हमें नहीं मिलता कोई, ठर्रा पिलाने वाला।
आपका रंग भी मोतियों सा निखर जाएगा
बहुत जल्दी हूँ मैं, साबुन वो बनाने वाला।
मरीज पूछता है, डाक्टर मुझे खुजली क्यों है?
यह पूछता है साल में इक बार नहाने वाला।
न जाने कौन ले गया, मेरे गधे के सर से सींग
बहुत परेशान है नत्थू धोबी लुध्याने वाला।
रेखांकन : पारस दासोत |
अब न घबराएँ आपके कष्ट हैं मिटने वाले
गला दबाना सीख रहा है, पाँव दबाने वाला।
अरे हम हैं न, उँगली निकालने के लिए
ढूँढ़कर लाओ कोई उँगली फँसाने वाला।
सभी खाते हैं मुझे भगवान बचाओ, गुड़ ने कहा
बोले भगवान, भाग जा, मैं भी हूँ तुम्हें खाने वाला।
मैं भी तो चैन से सो जाता ‘सरल’ तुम जैसे
काश! मिल जाता कोई नींद चुराने वाला।
- 28-ए, दुर्गा नगर, अम्बाला केन्ट (हरियाणा)
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रमेश मनोहरा
गहरा नाता
पहले तो उसने
उसके मन को टटोला
फिर धीरे से
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल |
रिश्वत का
क्यों बढ़ाया रेट?
जब कि खाली है
हमारा पेट
बाबू धीरे से मुस्काया
फिर यूँ समझाया-
रिश्वत और महंगाई का
गहरा नाता है
महँगाई से ही
रिश्वत की दर को
आँका जाता है
- शीतला गली, जावरा-457226, जिला रतलाम (म.प्र.)
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