अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 4, दिसम्बर 2012
{प्यारे नन्हे-मुन्ने दोस्तों,
तुम्हारे लिए शुरू बल अविराम का यह खंड पिछले महीने ही शुरू किया है। हालाँकि अभी इसमे तुम्हारे लिए बड़े साहित्यकारों की रचनाएँ ही प्रकाशित की गयी हैं, परन्तु तुम लोग अपनी लिखी कवितायेँ-कहानियां आदि भेजोगे तो उन्हें भी हम अवश्य प्रकाशित करेंगे। तुम लोगों के बनाये चित्र / पेंटिंग्स तो प्रकाशित करनी शुरू कर ही दी हैं। आखिर इसे तुम्हारी अपनी पत्रिका जैसा बनाना है न! उम्मीद है तुम लोग लोग इन करके अपने इस मज़ेदार खंड का भरपूर मज़ा लोगे।}
सामग्री : डॉ. यशोदा प्रसाद सेमल्टी एवं प्रभुदयाल श्रीवास्तव की कवितायेँ और उमेश महादोषी द्वारा बच्चों की पत्रिका "बालप्रहरी" का परिचय।
डॉ. यशोदा प्रसाद सेमल्टी
{अध्यापनरत डॉ. सेमल्टी जी की बाल कविताओं का संग्रह ‘नन्हा चमन’ अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है, जिसमें उनकी 62 बाल कविताएँ शामिल हैं। उनके इसी संग्रह से प्रस्तुत हैं दो बाल कविताएं।}
जीवन सीढ़ी
सूरज के जैसे तपना सीखो
संघर्षों से लड़ना सीखो
सरिता के सम बहना सीखो
धरती से सहनशीलता सीखो।
चन्द्र के जैसा निर्मल मन हो
पुष्प के जैसा कोमलपन हो
सागर जैसी गम्भीरता हो
हवा के जैसी समरसता हो।
जीवन में कुछ करना सीखो
प्रगति पथ पर चलना सीखो
कदम-कदम पर बढ़ना सीखो
जीवन सीढ़ी चढ़ना सीखो।
दीवाली
हर वर्ष दिवाली आती है
नई खुशी को लाती है
जगमग-जगमग दीपक जलते
घर-घर में पकवान हैं पकते
तरह-तरह की बने मिठाई
पास-पड़ोस में खुषबू छाई
लड्डू पेड़ा विविध पकोड़े
आसमान पर रॉकेट छोड़े
सीटी-साँप-पटाखे फोड़े
रंग-बिरंगी चक्री दौड़े
बच्चों ने फुलझड़ी जलाई
हलवा-पूड़ी-पकोड़ी खाई
बिजली की लड़ियों की टिम-टिम
घरों के आगे झिलमिल-झिलमिल
मोमबत्तियों की लम्बी पंक्ति
रंग-बिरंगी सुन्दर जलती
इधर धमाका - उधर धमाका
जिधर भी देखो फूटे पटाखा
दीपों का यह अद्भुत त्योहार
सब जग से मिट जाय अन्धकार।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
हाथी और चूहा
दो चूहों को बीच सड़क पर,
मिल गये हाथी दादा।
एक चूहा दूजे से बोला,
क्या है भाई इरादा?
कई दिनों से हाथ सुस्त हैं,
कसरत न हो पाई।
क्यों न हम हाथी दादा की,
कर दें आज धुनाई।
बोला तभी दूसरा चूहा,
उचित नहीं यह बात।
दो जब मिलकर किसी अकेले ,
पर करते हैं घात।
दुनियाँ वालों को भी यह सब,
होगा नहीं गवारा,
लोग कहेंगे दो सेठों ने,
एक गरीब को मारा।
डॉ. उमेश महादोषी
बच्चों के साथ बच्चों की पत्रिका : बाल प्रहरी
प्यारे बच्चो,
तुम्हें अपनी मनपसंद कहानियाँ और कविताएँ पढ़ने में खूब आनन्द आता है न? साथ में रोचक जानकारियाँ, चुटकुले, पहेलियों और खूबसूरत चित्र देखने में भी तुम्हें बेहद मजा आता है, है न? ये सारी चीजें जिन पत्रिकाओं में होती हैं वे तुम्हारी फेवरिट बन जाती हैं और तुम लोग जब मम्मी-पापा के साथ किसी बुक स्टाल पर जाते हो तो अपनी फेवरिट पत्रिकाओं के लिए जिद करते हो। छुट्टियों का आनन्द तो ये पत्रिकाएँ कई गुना बढ़ा देती हैं, जब तुम मम्मी-पापा के साथ कहीं घूमने जाते हो, तो ये पत्रिकाएँ रास्ते भर तुम्हारी दोस्त बनकर बोरियत भी कम करती हैं और तुम्हें आनन्द और स्फूर्ति से भर देती हैं। आज हम तुम्हें एक ऐसी ही पत्रिका के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसमें तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं। तुम पढ़ोगे तो कुछ ही क्षणों में वह तुम्हारी फेवरिट पत्रिका बन जायेगी। इस पत्रिका में एक खास बात भी है, जो अक्सर दूसरी बाल पत्रिकाओं में नहीं मिलती। जानते हो वह खास बात क्या है? उस पत्रिका में तुम्हारी अपनी लिखी कविताओं, कहानियों, चित्रों एवं विभिन्न प्रकार की जानकारियों का प्रकाशित होना। है न खास? अपनी रचनाओं व अन्य सामग्री को अपने नाम के साथ प्रकाशित हुआ देखकर तुम्हारा अपना मन तो नाच ही उठेगा न? इस पत्रिका के माध्यम से देश भर के कितने सारे लोग तुम्हारी रचनाओं को पढ़ते और चित्रों को देखते है, तुम्हारे बारे में जानकारी पाते हैं, कभी सोचा है तुमने? काफी बड़ी संख्या है इनकी।
क्या तुम इस पत्रिका का नाम नहीं जानना चाहोगे? हम बताते हैं, तुम्हारी इस प्यारी पत्रिका का नाम है- ‘बालप्रहरी’। यह पत्रिका उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा शहर से जुलाई 2004 से निरंतर प्रकाशित हो रही है। भले ही इसका एक अंक तीन महीने में एक बार ही आता है, पर इसमें तुम्हारे लिए इतनी मात्रा में रोचक, प्रेरणादायी और ज्ञानबर्द्धक जानकारी होती है कि उससे प्राप्त ऊर्जा तुम्हें मजे से अगले अंक तक के लिए तरोताजा रख सकती है। इसे प्रकाशित और संपादित करते हैं बालसाहित्य शोध एवं संवर्धन समिति, अल्मोड़ा की ओर से तुम्हारे दोस्त श्री उदय किरोला। उम्र में भले तुमसे बड़े हैं, पर किरोला जी हैं तुम्हारे पक्के दोस्त। इसीलिए तो बाल प्रहरी में बड़े बाल साहित्यकारों से भी ज्यादा संख्या में तुम लोगों द्वारा भेजीं रचनाएं, चित्र और जानकारियाँ तुम्हारे नाम, कक्षा, स्कूल, शहर के नाम सहित छापकर तुम्हें देश भर के बच्चों का हीरो बना देते हैं। तो देर किस बात की, तुम भी उनसे बात करो और भेज दो अपनी रचनाएं और चित्र। लेकिन तुमने यदि इस पत्रिका को देखा-पढ़ा नहीं है तो इसे अभी से मंगाना भी शुरू कर दो। पता और दूसरी जानकारी हम अभी थोड़ी देर में अपनी बात पूरी करने के बाद तुम्हें बता ही देंगे।
अब तुम्हें हम ‘बालप्रहरी’ के ताजा अंक यानी ‘अक्टूबर-दिसम्बर 2012’ अंक में प्रकाशित सामग्री की मोटी-मोटी जानकारी भी दे दें, तांकि तुम्हें पता चल जाये कि यह वाकई एक मजेदार पत्रिका है। तुम्हारे जैसे बच्चे मम्मी-पापा के साथ दिवाली का सुरक्षित और भरपूर आनन्द से भरा मजा कैसे लेते हैं, इसका दृश्य तो इस आलेख के साथ संलग्न इसके आवरण चित्र में तुम देख ही रहे होगे। जब पत्रिका का दरवाजा ही खूबसूरत और मजेदार है, तो अन्दर तो मजा आना ही है। हर अंक की तरह इस अंक में भी बड़ों की लिखी नौ प्यारी सी कहानियाँ हैं, जिनमें से यूँ तो सभी मजेदार हैं, पर मुकेश नोटियाल की कहानी ‘यांगसू के खानाबदोश’ तुम्हें दूर-दराज के पहाड़ों पर रहने वाले लोगों की प्राचीन जीवन-शैली की भी जानकारी देती है। अनिल सतीजा की ‘फ्रिज का पानी’, डा. मोह. अरशद खान की ‘चिड़चिड़ी चाय चाची’, सुकीर्ति भटनागर की ‘चुगलखोर मैना’ सत्यनारायण भटनागर की ‘बिना श्रम के सफलता’ कहानियाँ तुम्हारा मनोरंजन तो करती ही हैं, तुम्हें जीवन में सद्भाव, प्रेम, परिश्रम, दूरदर्शिता की प्रेरणा भी देती हैं। दो दर्जन से अधिक बड़े कवियों की रस भरी कविताएँ हैं, जिनमें एक कुमायूँनी और एक गढ़वाली भाषा में भी है। डॉ. मृदुला जोशी जी ने अपने लेख में अपनी जापान यात्रा के आधार पर वहाँ की जीवन शैली और व्यवस्थाओं व स्वअनुशासन के बारे में विस्तार से बताया है। इस लेख से तुम समझ सकोगे कि जापान की प्रगति के पीछे कोई छुपा हुआ रहस्य नहीं, बल्कि इन्हीं चीजों की भूमिका है। विश्व के पहले कंप्यूटर, खून चूसने वाले चमगादड़, कभी पानी न पीने वाले जन्तु आदि के बारे में ज्ञानवर्द्धक जानकारी के साथ पाकिस्तान में शिक्षा के हक के लिए लड़ने वाली तुम्हारी हम उम्र बहादुर लड़की ‘मलाला’ के बारे में भी बताया गया है। महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा का परिचय भी दिया गया है। सुडोकू व रंग पहेली में तुम्हारी दिमांगी व रचनात्मक परीक्षा ली गई है तो तुम्हारे लिए कविता, कहानी, निबन्ध एवं सामान्य ज्ञान की इनामी प्रतियोगिताओं का आयोजन भी है। बालप्रहरी बाल क्लब में 14 वर्ष तक आयु के नन्हें-मुन्नों के फोटो उनके नाम व स्थान के साथ शामिल हैं। तुम जैसे करीब साठ बच्चों की छोटी-छोटी सुन्दर कविताओं-कहानियाँ व दूसरी रचनाओं के साथ अनेक बच्चों के बनाये खूबसूरत चित्रों ने पत्रिका को जगमग तो किया ही है, उसे वास्तव में तुम बच्चों की पत्रिका बना दिया है। एक बात माननी पड़ेगी, तुम लोग चुटकुले बहुत मजेदार भेजते हो। अब इसी को ले ले-
लड़का (टैक्सी वाले से)- भैया खाली हो?
टैक्सी वाला- हां।
लड़का : चलों फिर लूडो खेलते हैं।
हा....हा....हा!....अब बताओ, ‘बालप्रहरी’ है न मजेदार? उम्मीद है तुम-सब जरूर पढ़ना चाहोगे। डाक से मंगाने के लिए तीन वर्ष का शुल्क रु. 160/- और आजीवन शुल्क है रु. 1000/-। शुल्क ‘संपादक, बालप्रहरी, जाखनदेवी, अल्मोड़ा-263601, उत्तराखण्ड’ के पते पर धनादेश या बैंक ड्राफ्ट द्वारा भेजा जा सकता है। राशि पंजाब नेशनल बैंक में बालप्रहरी के खाता संख्या 0962000101357002 में जमा करके विवरण की सूचना उदय किरोली जी को मोबाइल नं. 09412162950 पर दी जा सकती है।
।।बाल अविराम।।
सामग्री : डॉ. यशोदा प्रसाद सेमल्टी एवं प्रभुदयाल श्रीवास्तव की कवितायेँ और उमेश महादोषी द्वारा बच्चों की पत्रिका "बालप्रहरी" का परिचय।
डॉ. यशोदा प्रसाद सेमल्टी
जीवन सीढ़ी
सूरज के जैसे तपना सीखो
संघर्षों से लड़ना सीखो
चित्र : आरुषी ऐरन, रुड़की |
धरती से सहनशीलता सीखो।
चन्द्र के जैसा निर्मल मन हो
पुष्प के जैसा कोमलपन हो
सागर जैसी गम्भीरता हो
हवा के जैसी समरसता हो।
जीवन में कुछ करना सीखो
प्रगति पथ पर चलना सीखो
कदम-कदम पर बढ़ना सीखो
जीवन सीढ़ी चढ़ना सीखो।
दीवाली
हर वर्ष दिवाली आती है
नई खुशी को लाती है
रेखाचित्र : अभय ऐरन, रुड़की |
घर-घर में पकवान हैं पकते
तरह-तरह की बने मिठाई
पास-पड़ोस में खुषबू छाई
लड्डू पेड़ा विविध पकोड़े
आसमान पर रॉकेट छोड़े
सीटी-साँप-पटाखे फोड़े
रंग-बिरंगी चक्री दौड़े
बच्चों ने फुलझड़ी जलाई
हलवा-पूड़ी-पकोड़ी खाई
बिजली की लड़ियों की टिम-टिम
घरों के आगे झिलमिल-झिलमिल
मोमबत्तियों की लम्बी पंक्ति
रंग-बिरंगी सुन्दर जलती
इधर धमाका - उधर धमाका
जिधर भी देखो फूटे पटाखा
दीपों का यह अद्भुत त्योहार
सब जग से मिट जाय अन्धकार।
- राजकीय इण्टर कॉलेज, कवां एटहाली, उत्तरकाशी (उत्तराखण्ड)
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
हाथी और चूहा
दो चूहों को बीच सड़क पर,
मिल गये हाथी दादा।
एक चूहा दूजे से बोला,
क्या है भाई इरादा?
कई दिनों से हाथ सुस्त हैं,
कसरत न हो पाई।
चित्र : आरुषी ऐरन, रुड़की |
कर दें आज धुनाई।
बोला तभी दूसरा चूहा,
उचित नहीं यह बात।
दो जब मिलकर किसी अकेले ,
पर करते हैं घात।
दुनियाँ वालों को भी यह सब,
होगा नहीं गवारा,
लोग कहेंगे दो सेठों ने,
एक गरीब को मारा।
- 12, शिवम सुंदरम नगर, छिंदवाड़ा, म.प्र.
डॉ. उमेश महादोषी
बच्चों के साथ बच्चों की पत्रिका : बाल प्रहरी
प्यारे बच्चो,
तुम्हें अपनी मनपसंद कहानियाँ और कविताएँ पढ़ने में खूब आनन्द आता है न? साथ में रोचक जानकारियाँ, चुटकुले, पहेलियों और खूबसूरत चित्र देखने में भी तुम्हें बेहद मजा आता है, है न? ये सारी चीजें जिन पत्रिकाओं में होती हैं वे तुम्हारी फेवरिट बन जाती हैं और तुम लोग जब मम्मी-पापा के साथ किसी बुक स्टाल पर जाते हो तो अपनी फेवरिट पत्रिकाओं के लिए जिद करते हो। छुट्टियों का आनन्द तो ये पत्रिकाएँ कई गुना बढ़ा देती हैं, जब तुम मम्मी-पापा के साथ कहीं घूमने जाते हो, तो ये पत्रिकाएँ रास्ते भर तुम्हारी दोस्त बनकर बोरियत भी कम करती हैं और तुम्हें आनन्द और स्फूर्ति से भर देती हैं। आज हम तुम्हें एक ऐसी ही पत्रिका के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसमें तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं। तुम पढ़ोगे तो कुछ ही क्षणों में वह तुम्हारी फेवरिट पत्रिका बन जायेगी। इस पत्रिका में एक खास बात भी है, जो अक्सर दूसरी बाल पत्रिकाओं में नहीं मिलती। जानते हो वह खास बात क्या है? उस पत्रिका में तुम्हारी अपनी लिखी कविताओं, कहानियों, चित्रों एवं विभिन्न प्रकार की जानकारियों का प्रकाशित होना। है न खास? अपनी रचनाओं व अन्य सामग्री को अपने नाम के साथ प्रकाशित हुआ देखकर तुम्हारा अपना मन तो नाच ही उठेगा न? इस पत्रिका के माध्यम से देश भर के कितने सारे लोग तुम्हारी रचनाओं को पढ़ते और चित्रों को देखते है, तुम्हारे बारे में जानकारी पाते हैं, कभी सोचा है तुमने? काफी बड़ी संख्या है इनकी।
क्या तुम इस पत्रिका का नाम नहीं जानना चाहोगे? हम बताते हैं, तुम्हारी इस प्यारी पत्रिका का नाम है- ‘बालप्रहरी’। यह पत्रिका उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा शहर से जुलाई 2004 से निरंतर प्रकाशित हो रही है। भले ही इसका एक अंक तीन महीने में एक बार ही आता है, पर इसमें तुम्हारे लिए इतनी मात्रा में रोचक, प्रेरणादायी और ज्ञानबर्द्धक जानकारी होती है कि उससे प्राप्त ऊर्जा तुम्हें मजे से अगले अंक तक के लिए तरोताजा रख सकती है। इसे प्रकाशित और संपादित करते हैं बालसाहित्य शोध एवं संवर्धन समिति, अल्मोड़ा की ओर से तुम्हारे दोस्त श्री उदय किरोला। उम्र में भले तुमसे बड़े हैं, पर किरोला जी हैं तुम्हारे पक्के दोस्त। इसीलिए तो बाल प्रहरी में बड़े बाल साहित्यकारों से भी ज्यादा संख्या में तुम लोगों द्वारा भेजीं रचनाएं, चित्र और जानकारियाँ तुम्हारे नाम, कक्षा, स्कूल, शहर के नाम सहित छापकर तुम्हें देश भर के बच्चों का हीरो बना देते हैं। तो देर किस बात की, तुम भी उनसे बात करो और भेज दो अपनी रचनाएं और चित्र। लेकिन तुमने यदि इस पत्रिका को देखा-पढ़ा नहीं है तो इसे अभी से मंगाना भी शुरू कर दो। पता और दूसरी जानकारी हम अभी थोड़ी देर में अपनी बात पूरी करने के बाद तुम्हें बता ही देंगे।
पेंटिंग : मिली भाटिया, रावतभाटा |
लड़का (टैक्सी वाले से)- भैया खाली हो?
टैक्सी वाला- हां।
लड़का : चलों फिर लूडो खेलते हैं।
हा....हा....हा!....अब बताओ, ‘बालप्रहरी’ है न मजेदार? उम्मीद है तुम-सब जरूर पढ़ना चाहोगे। डाक से मंगाने के लिए तीन वर्ष का शुल्क रु. 160/- और आजीवन शुल्क है रु. 1000/-। शुल्क ‘संपादक, बालप्रहरी, जाखनदेवी, अल्मोड़ा-263601, उत्तराखण्ड’ के पते पर धनादेश या बैंक ड्राफ्ट द्वारा भेजा जा सकता है। राशि पंजाब नेशनल बैंक में बालप्रहरी के खाता संख्या 0962000101357002 में जमा करके विवरण की सूचना उदय किरोली जी को मोबाइल नं. 09412162950 पर दी जा सकती है।
- ऍफ़-488/2, गली-11, राजेंद्र नगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उत्तराखंड)
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