अस्तुत अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 1, अंक : 08-09, अप्रैल-मई 2012
।।हाइकु।।
सामग्री : रचना श्रीवास्तव, डॉ भावना कुँअर, कमला निखुर्पा एवं मंजु मिश्रा के हाइकु एवं त्रिलोक सिंह ठकुरैला का एक हाइकु गीत।
(अविराम के जून २०११ अंक, जो कि हाइकु, जनक छंद एवं क्षणिका पर केन्द्रित था, में अंक के अतिथि संपादक आदरणीय रामेश्वर कम्बोज हिमांशु जी द्वारा चयनित कई मित्रों के कुछ हाइकु स्थानाभाव के कारण प्रकाशित होने से रह गए थे। इस अंक में उन्हीं में से कुछ मित्रों के प्रकाशित होने से छूट गए हाइकु प्रस्तुत हैं। छूटे हुए शेष हाइकु भी यथासंभव प्रकाशित करने का प्रयास किया जायेगा। साथ ही त्रिलोक सिंह ठकुरैला का एक हाइकु गीत भी प्रस्तुत है।)
चार हाइकु
1.
बच्चे की पूँजी
खिलौनों की झबिया
माँ का आँचल
2.
घमंडी चाँद
रात में न निकला
दिया मुस्काया ।
3.
बच्चों के लिए
माँ हो गई बुढ़िया
पता न चला ।
4.
न कोई आस
बुढ़ापे का साथ तो
केवल प्यार ।
- प्रवास : डैलस (यू एस ए )। भारत का पता- रचना श्रीवास्तव द्वारा श्री रमाकान्त पाण्डेय ए-36, सर्वोदय नगर , लखनऊ (उ.प्र.) ई मेल- rach_anvi@yahoo.com
डॉ भावना कुँअर
चार हाइकु
1.
चिड़ियाँ गातीं
घंटियाँ मन्दिर की
गीत सुनातीं।
2
चमकती थी
द्रश्य छायांकन : डॉ. उमेश महादोषी |
चाँदनी रात ।
3.
आसमान में
दूधिया -सा चन्द्रमा
चमक रहा।
4.
नहीं भाता है
पतझर किसी को
भाये बंसत ।
- प्रवास : सिडनी आस्ट्रेलिया (भारत में पता : 2, ऍफ़-51, नेहरूनगर, गाज़ियाबाद, उ.प्र.)
कमला निखुर्पा
पांच हाइकु
1.
भीगी पलकें
नयनों के प्याले में
सिन्धु छ्लके ।
2.
मन- बगिया
तन फूलों का हार
महका प्यार।
3.
रेखांकन : नरेश उदास |
पुकारे बादल को
मोती बरसे।
4.
नैनों की सीपी
चम -चम चमके
नेह के मोती।
5.
तेरा चेहरा
नभ में चमके ज्यों
भोर का तारा।
- हिन्दी -प्रवक्ता , केन्द्रीय विद्यालय वन अनुसंधान केन्द्र देहरादून (उत्तराखण्ड)
ई मेल : kamlanikhurpa@gmail-com
मंजु मिश्रा
चार हाइकु
1.
छाया वसंत
सज गई धरती
उमड़ी प्रीत
2.
तन झाँझर
माँदल हुई धरा
मन मयूर
3.
उम्र बहकी
बाँध लिया मन ने
संगी से नाता
4.
प्रेम का पंथ
है जग से निराला
विश का प्याला
- प्रवास : कैलिफ़ोर्निया { भारत का पता: द्वारा श्री राजीवशंकर मिश्रा, 146,
पी.एल.शर्मा रोड, मेरठ-250001(उ.प्र.)} ई-मेल : manjumishra@gmail.com
हाइकु गीत
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बगिया का मौसम
बदल गया
बगिया का मौसम,
चुप रहना।
गया बसंत
आ गया पतझर,
दिन बदले।
द्रश्य छायांकन : अभिशक्ति |
कोयल मौन
और सब सहमे,
पवन जले।
दर्द उपवन का
अब सहना।।
आकर गिद्ध
बसे उपवन में
हुआ गज़ब।
जुटे सियार
रात भर करते,
नाटक सब।
अब किसको
आसान रह गया
सच कहना।।
- बंगला संख्या-एल-99,रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड-307026 (राज.)
सभी हाइकु और हाइकु गीत बहुत अच्छे लगे. सभी हाइकुकारों को बधाई. अविराम की अन्य सामग्री भी बहुत प्रशंसनीय है. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ रचनाओं के लिए सभी रचनाकारों को बधाई!
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