अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 1, अंक : 08-09, अप्रैल-मई 2012
।।कथा कहानी।।
सामग्री : डॉ0 सुरेश प्रकाश शुक्ल की कहानी-धूप-छांव
डॉ0 सुरेश प्रकाश शुक्ल
धूप-छांव
रात के बारह बजे का समय था। जून के महीने में रात के समय पुरवाई के हल्के झोंके लोगों को गहरी नींद में सुला रहे थे। मैं भी सपरिवार आंगन में सो रहा था। अचानक वस्तुओं को फेंकने की आवाज और जोर-जोर से लड़ने के शोर को सुनकर सभी लोग उठ बैठे । इधर-उधर देखने लगे कि रात में ये क्या होने लगा ? झगड़ने की आवाजें और तेज हो गई तो सभी जान गये कि ये पड़ोस के मकान में ऊपरी मंजिल पर रहने वाले पाठक जी और उसकी पत्नी के बीच में लड़ाई हो रही है। उनकी इकलौती लड़की रानी हमारी ओर निकले हुए छज्जे पर भाग कर ऐसी खड़ी हो गयी थी मानो हम लोगों से सहायता के लिए प्रार्थना कर रही हो। थोड़ी देर आस पड़ोस के सब लोग सुनते रहे रात अधिक होने के कारण अपनी-अपनी चादर खींचकर सो गये क्योंकि यह तो उनके घर का रोज़ का ही तमाश था।
पाठक जी जानवरों के डाक्टर थे और लखनऊ से दूर सुल्तानपुर के पास किसी देहात के अस्पताल में कार्य कर रहे थे। उनकी पत्नी आरती एक जूनयर हाईस्कूल में अध्यापिका थी और अपनी लड़की रानी के साथ रहकर उसे बड़ी लगन और मेहनत से पढ़ा रही थी। रानी पढ़ने में बड़ी तेज और होनहार थी। अपनी माँ की देख-रेख में उसने हमेशा अच्छी बातें सीखी थीं और कभी भी गन्दे या बुरे बच्चों के साथ नहीं खेलती थी। वह हमेशा अपनी कक्षा में विशेष स्थान प्राप्त करके उत्तीर्ण होती थी। लेकिन हमेशा एक ही उदासी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ती थी जो उसके पिता के कारण थी। वैसे तो उसके पिताजी उसे प्यार करते थे किन्तु उनकी हरकतें हमेशा उसे और उसकी माँ को परेशान किये रहती थीं। उन दोनों के पास उस समय रोने के अलावा कोई और रास्ता नहीं रहता था। आर्थिक दृष्टि से आरती अपने पति पर निर्भर नहीं थीं और इसीलिये वह कभी-कभी पाठक जी से लड़ भी पड़ती थीं। लेकिन औरत चाहे कितनी भी आत्मनिर्भर क्यों न हो हमारी सामाजिक व्यवस्था में पुरूष को प्रधानता प्राप्त है और इसी का अनुचित लाभ लेकर लोग औरतों को प्रताड़ित करते रहते हैं। चाहे वो कितनी ही समर्थ क्यों न हो ?
पाठक जी एक बुरे आदमी थे। उनमें सब प्रकार की खराब आदतें और व्यसन थे। वे जब भी लखनऊ आते तो रात के समय ही आते और और उस समय वे अपने होश में कभी नहीं होते थे। परिवार से मिलने पर लोग प्यार से दो बातें करते हैं किन्तु उनके परिवार में आते ही शान्ति, अशान्ति में बदल जाती थी। वास्तव में उनके परिवार में यही तो एक दुख था अन्यथा वे तीन ही प्राणी थे। दोनों ही कमाते थे और मनपसंद खर्च भी करते थे। लेकिन पाठक जी के खर्चे इतने बढ़े हुए थे कि उनकी खुद की आमदनी कम पड़ जाती थी और तभी उन्हें पत्नी की याद आती थी। आते ही वे पहले यही पूंछते कि तुम्हें तो वेतन मिल गया होगा? कुछ मुझे भी दे दो। और इसी पर दोनों में झगड़ा शुरू हो जाता था।
उस रात बुरी तरह झगड़ने के बाद पाठक जी ने घर के तमाम सामान पटक कर तोड़ दिये थे और अपनी पत्नी आरती को भी बुरी तरह पीटा था जिससे उसकी सारी चूड़ियां टूट गयी थी। उनके मुँह से शराब की बदबू आ रही थी। जो पड़ोसियों के लिये भी पीड़ा का करण थी। उस सारी रात ये तमाशा होता रहा पर किसी ने भी उनके बीच में आने की कोशिश नहीं की। सभी लोग अब इस माहौल के आदी हो चुके थे। सवेरा होने से पहले ही पाठक जी पता नहीं कब चुपके से कहीं खिसक गये थे। सबेरे आरती ने रोते हुए सब से बताया कि उसकी सोने की चूड़ियां और बाली लेकर डाक्टर साहब चम्पत हो गये हैं। यही क्रम लगभग दो वर्ष तक चलता रहा और उसी बीच में हम लोगों ने अपना घर बदल लिया पर उस मोहल्ले में काफी समय रहने के कारण अब भी आरती और अन्य लोगों के यहां आना जाना था।
एक दिन सवेरे जाड़े के मौसम में मैं धूप में चाय का आनन्द ले रहा थ कि आरती जी अपनी बेटी रानी के साथ कुछ परेशान सी आती हुई दिखाई पड़ीं। आने पर मैने पूछा, भाभी जी क्या बात है? सवेरे-सवेरे कुछ परेशान सी दिख रही हैं।
उन्होंने रोते हुये सारी बात बताई जो वास्तव में चिंता की बात थी। हुआ यह था कि डाक्टर पाठक के अस्पताल से एक आदमी आया था जिसने बताया कि डाक्टर साहब को एक शर्मनाक काम के लिये वहाँ की पुलिस पकड़ कर ले गई है। तभी आरती जी ने यह भी बताया था कि उनकी माँ के मरने के बाद पिता जी ने दूसरी शादी कर ली थी और आरती की सौतेली माँ ने ही उनकी शादी एक शराबी और बदचलन आदमी से कर दी थी। आरती जी ने अपने पिताजी से जब पुलिस द्वारा अपने पति को पकड़े जाने की बात बताई तो उन्होंने दौड़-भाग करके किसी तरह उनको छुड़वाया था, नहीं तो उनकी नौकरी भी चली जाती।
कुछ दिन बाद अचानक मालूम हुआ कि डाक्टर पाठक की कुछ अज्ञात लोगों ने हत्या कर दी है। सुनकर कुछ तो दुःख हुआ फिर सोचा कि चलो बेचारी आरती जी और उनकी बेटी को एक दुष्ट आदमी की ज्यादतियों से छुटकारा तो मिल गया। कई बार आरती जी ने भी कहा था कि ऐसे आदमी से तो अच्छा है कि बिना आदमी के ही बसर कर लें।
होनी को कौन टाल सकता है? हम लोग उनके घर गये तो देखा आरती जी अपनी रानी को लिये हुए उदास बैठी थीं। पास मेें मोहल्ले की कुछ औरते खुसुर-फसुर कर रही थीं। लोग आते थे और दुःख प्रकट करके चले जाते थे। आरती जी ने बताया कि किसी बुरे काम करने के कारण गांव वालों ने उन्हें जान से मार डाला और उनके शरीर के कई टुकड़े भी कर डाले थे। पोस्टमार्टम में बाद उनकी लाश भिजवा दी गई थी।
इस घटना के बाद आरती जी ने अपने स्कूल से एक महीने की छुट्टी ले ली थी और फिर स्कूल में गर्मी की छुट्टियाँ भी हो गई तो आरती अपनी बेटी को लेकर अपने पिता के यहाँ चली गई थीं। अब धीरे-धीरे आरती अपने दुख भूल चुकी हैं और उनके चेहरे पर एक प्रकार का संतोष सहज ही दिखाई पड़ता है। कुछ दिन पहले मेरे घर आयीं तो बताने लगीं कि ईश्वर ने एक सुख तो ले लिया पर अब हम लोग बड़े दुख सुख और संतोष के साथ जीवन बसर कर रहे हैं। उन्होंने हमारी कालोनी में ही एक छोटा सा मकान भी ले लिया है। उनकी बेटी रानी भी अब मायूस और सहमी हुई नहीं लगती। हमारे बच्चों के साथ खुब घुल मिल गयी है। हाईस्कूल परीक्षा में प्रथम पास हुई है। जाते समय बोली, अंकल जी हमारे नये घर में सबको लेकर अवश्य आइयेगा।
और हम लोग उसके हाईस्कूल पास और नये घर होने की खुशी में उनके साथ थे।
- 554/93, पवनपुरी लेन 9, आलमबाग, लखनऊ-05 (उ.प्र.)
यह कहानी नारी शोषण का प्रतीक है |लेकिन पढ़कर खुशी हुई कि आरती बार -बार टूटी मगर उठ खड़ी हुई अपने लिए , अपनी संतान के लिए |
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