अविराम का ब्लॉग : वर्ष : ०1, अंक : 08-09, अप्रैल-मई 2012
अविराम का ब्लॉग : वर्ष : ०1, अंक : 08-09, अप्रैल-मई 2012
हस्तलेख में जनक छन्द ग्रन्थ योजना
जनक छन्द के आचार्य व प्रणेता डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ जी जनक छन्द के रचनाकारों के ही हस्तलेख में जनक छन्द का वृहद ग्रन्थ तैयार कर रहे हैं। जनक छन्द के कविगण ए-4 आकार के पन्ने पर चारों ओर हाशिया छोड़कर पन्ने के एक ओर काली स्याही से अपना नाम-पता, जनक संबंधी कृतित्व और अपने 10-15 तक उत्तम जनक छन्द डा. अराज जी को उनके पते- बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-58 (फोन 011-25525386/09971773707) के पते पर शीघ्र भेज सकते हैं।(समाचार सौजन्य: डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया अराज)हिंदी समाज में वैज्ञानिक चेतना का अभाव
तेजी से बदलती दुनिया में जहाँ विज्ञान ने नए आयाम स्थापित किए हैं, वहीं हमारे रूढ़िवादी समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी गहरी हुई हैं। किसी भी समाज के निर्माण में भाषा का योगदान महत्वपूर्ण होता है। भाषा ही विचारों की अभिव्यक्ति है और वही तय करती है कि हमारे समाज की दिशा और दशा क्या होगी? हिन्दी भाषा और साहित्य में उस वैज्ञानिक चेतना की कमी अखरती है जो समाज को तार्किक और विश्वसनीय बनाती है। उक्त विचार ‘विज्ञान-प्रसार’ के निदेशक डॉ. सुबोध महंती ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ में ‘विज्ञान-प्रसार’ और राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर) के सहयोग से पिछले दिनों (26-27 मार्च, 2012) आयोजित ‘वैज्ञानिक मानसिकता और हिंदी लेखन’ विषयक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये।
‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. गौहर रजा ने कहा कि आज विज्ञान की तार्किकता के स्थान पर अंधविश्वास ने जगह ले ली है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हम अपनी नई पीढ़ी के सामने ज्ञान-विज्ञान को किस प्रकार वैज्ञानिक ढंग से उसके आधारभूत तत्व - तार्किकता और विश्वसनीयता के साथ प्रस्तुत करें। तभी हम अपने समाज, राज्य और आने वाली पीढ़ियों को वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि से युक्त विश्व-समाज से जोड़ सकते हैं।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखक प्रेमपाल शर्मा ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता और समाज’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि अंधविश्वासी समाज विज्ञान को संकुचित नजरिए से देखता आया है। तर्कों पर आस्था हमेशा भारी पड़ी है। कर्मकांडों को आस्था का प्रश्न मानकर वैज्ञानिक पक्ष का कभी विश्लेषण नहीं किया गया। समाज में प्रचलित धार्मिक विश्वासों का एक सबल वैज्ञानिक पहलू रहा है, उसकेे प्रचार-प्रसार द्वारा हम रूढ़िवादी समाज को अंधविश्वासों से मुक्त कर सकते हैं।
अपने स्वागत-संबोधन में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो.एल.एस.बिष्ट ‘बटरोही’ ने कहा कि पाठ्यक्रम की माध्यम-भाषा के रूप में जो हिंदी विकसित हुई है, वह या तो अनुवाद की कृत्रिम भाषा है या सुदूर अतीत के व्याकरण से निर्मित अस्पष्ट भाषा। ज्ञान-विज्ञान को अपने परिवेश का हिस्सा बनाने के लिए केवल शब्दों के आयात से काम नहीं चलता, उसके लिए नई मानसिकता और नए रचनात्मक तेवरों के द्वारा भाषा का नए सिरे से निर्माण आवश्यक है। इस अवसर पर देवेंद्र मेवाड़ी की पुस्तक ‘मेरी विज्ञान कथाएँ’ तथा सिद्धेश्वर सिंह के कविता-संग्रह ‘कर्मनाशा’ का विमोचन गणमान्य अतिथियों ने किया।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रो. गोविन्द सिंह ने कहा कि भाषा और साहित्य की सामान्य अभिव्यक्ति पत्रकारिता में दिखाई पड़ती है। किसी भी घटना पर तात्कालिक प्रतिक्रिया करते समय पत्रकार के विवेक और मानसिकता का विशेष महत्व है। यदि वैज्ञानिक सोच के साथ किसी घटनाक्रम का विश्लेषण किया जाए तो घटना सनसनी के बजाय अधिक विश्वसनीय लगेगी।
विज्ञान अध्येता एवं कथाकार प्रो. कविता पांडेय ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता: हिन्दी क्षेत्र की महिलाओं की भूमिका’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि हिन्दी समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम रही है। ऐसे में उनमें वैज्ञानिक मानसिकता का अभाव स्वाभाविक है। फिर भी शिक्षा के प्रसार के साथ विज्ञान और दूसरे क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है तो इसका प्रमुख कारण उनकी वैज्ञानिक सोच है।
विज्ञान प्राध्यापक और साहित्यकार डॉ. नवीन नैथानी ने कहा कि विज्ञान को तार्किक ढंग से नई पीढ़ी तक पहुँचाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज विज्ञान के साथ ही मानविकी से जुड़े सभी विषयों के पाठ्यक्रम को वैज्ञानिक ढंग से पुनर्प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम के साथ ही हमारे शिक्षण में भी वैज्ञानिक मानसिकता झलकनी चाहिए। वैज्ञानिक सोच से परिपूर्ण शिक्षक ही रूढ़िवादी समाज में वैज्ञानिक चेतना की अलख जगा सकता है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कथाकार, उपन्यासकार एवं ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि विज्ञान ने हमें अपने समय के साथ संवाद के अनेक अवसर प्रदान किए हैं और विश्व नागरिक के रूप में हमारी जानकारी का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है लेकिन अकादमिक जगत में इसकी हलचल नहीं सुनाई देती। वर्तमान में हिन्दी में लेखन के नाम पर ललित साहित्य की चर्चा होती है, जबकि हमारा समाज ज्ञान के जबरदस्त विस्फोट के दौर से गुजर रहा है।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए चर्चित कवि विजय गौड़ ने कहा कि सामान्यतः विज्ञान को अंग्रेजी से जोड़कर देखा जाता है जो हमारे संस्कारों की भाषा न होकर एक आयातित भाषा है। हिंदी भाषा से जुड़ी अभिव्यक्ति में वह वैज्ञानिक मानसिकता नहीं दिखाई देती जिसे विज्ञान ने बड़े प्रयत्नों से हमारे समय को दिया है। युवा साहित्यकार प्रभात रंजन ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी एक ओर अपनी जड़ों से कटती जा रही है, दूसरी ओर नए विश्व में उजागर हो रहे ज्ञान से उसका रिश्ता कमजोर पड़ता जा रहा है। पत्रकार अनिल यादव ने विज्ञान की तार्किकता को संकुचित नजरिए से देखने की बजाय उसे जीवन के जरूरी अंग के रूप में देखने की जरूरत पर बल दिया। सामाजिक विश्लेषक कृष्ण सिंह के अनुसार जीवन का हर पहलू विज्ञान से जुड़ा है लेकिन विज्ञान को हाशिए पर रखकर हम चहुँमुखी विकास की कल्पना नहीं कर सकते।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी ने कहा कि वैज्ञानिक सोच को अपने जीवन में आत्मसात कर ही हम सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। विज्ञान पाठ्यक्रम और शोध के विषय के रूप में ही नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है। हम किसी भी क्षेत्र अथवा विषय से क्यों न जुड़े हों, यदि हमारी सोच वैज्ञानिक होगी तभी हमारा समाज और राष्ट्र सही मायनों में तरक्की कर सकता है। सत्र का संचालन कवि-आलोचक डॉ. सिद्धेश्वर सिंह ने किया।
इस अवसर पर प्रतिभागियों के सुझावों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ तथा विभिन्न संस्तुतियों के आधार पर ‘रामगढ़ पत्र’ के प्रारूप का आलेखन किया गया। संगोष्ठी में सत्रानुसार आयोजित विमर्श में साहित्यकार शैलेय, दिनेश कर्नाटक, त्रेपन सिंह चौहान, सृजन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत, पत्रकार रोहित जोशी, भास्कर उप्रेती, राहुल सिंह शेखावत, प्राध्यापक प्रो. गंगा बिष्ट, डॉ. सुधीर चंद्र, डॉ. ललित तिवारी, डॉ. गीता तिवारी, डॉ. प्रकाश चौधरी सहित कपिल त्रिपाठी, भरत हर्नवाल, द्रोपदी सिंह, उमा जोशी, रजनी चौधरी, निर्भय हर्नवाल, हिमांशु पांडे आदि ने भाग लिया। अंत में ‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. सुरजीत सिंह ने सभी प्रतिभागियों और गणमान्य अतिथियों का धन्यवाद व्यक्त किया।
(समाचार प्रस्तुति: मोहन सिंह रावत वर्ड्स आई व्यू इम्पायर होटल परिसर, तल्लीताल, नैनीताल-263 002 )
सहयोगी जी की दो पुस्तकों का लोकार्पण
चर्चित साहित्यकार श्री शिवानन्द सिंह सहयोगी जी की दो काव्य पुस्तकों ‘घर-मुँडेर की सोनचिरैया’ एवं ‘दुमदार दोहे’ का लोकार्पण विगत दिनों मेरठ में डॉ. श्रीकान्त शुक्ल के संचालन में सम्पन्न हुआ। मुख्य अतिथि थे सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ तथा अध्यक्ष थे- उत्तर प्रदेश मासिक के संपादक डॉ. सुरेश उजाला। इस अवसर पर भाषाविद डॉ. कमल सिंह, ग़ज़लकार किशन स्वरूप एवं दूरसंचार मेरठ के वरिष्ठ महाप्रबन्धक श्री शमीम अख्तर एवं अनेक साहित्यकार भी मौजूद रहे। डॉ. अमिताभ ने सहयोगी जी की संवेदनशीलता एवं उनकी गीत रचना पर तथा डॉ. सुरेश उजाला ने सहयोगी जी के काव्य में आंचलिकता के माधुर्य एवं जीवन की विसंगतियों से प्राप्त प्रेरणाओं पर रोशनी डाली। डॉ. कमल सिंह ने उनके दोहों की विशेषताओं को रेखांकित किया।(समाचार सौजन्य: नवेन्दु सिंह, अलीगढ़)
कथा सागर की साहित्य सम्मान देने की योजना
सुप्रसिद्ध लघु पत्रिका ‘कथा सागर’ ‘भारतीय साहित्य सृजन संस्थान के साथ मिलकर साहित्य की विभिन्न विधाओं में सृजनरत रचनाकारों को उनके योगदान के लिए सम्मानित करेगी। ये सम्मान क्रमशः उपन्यास (रांगेय राघव साहित्य पुरस्कार), कहानी (राजकमल चौधरी साहित्य पुरस्कार), आंचलिक कहानी (फणीन्द्रनाथ रेणु साहित्य पुरस्कार), कविता (अमृता प्रीतम साहित्य पुरस्कार), लघुकथा (रमेश बत्तरा साहित्य पुरस्कार), नाटक (मोहन राकेश साहित्य पुरस्कार) व हास्य व्यंग्य (हरिशंकर परसाईं साहित्य पुरस्कार) के क्षेत्र में प्रमुखतः दिए जायेंगे। इसके अतिरिक्त अन्य विधाओं में भी ‘कथा सागर साहित्य सम्मान’ प्रदान किए जायेंगे। वर्ष 2009 से अगस्त 2012 के मध्य प्रकाशित कृतियों की दो प्रतियों, लेखक के परिचय, फोटो व रु.100/- प्रवेश शुल्क के साथ प्रविष्टियां 30 सितम्बर 2012 तक मांगी गई हैं। अन्य जानकारी व प्रविष्टियां भेजने के लिए निदेशक, भारतीय साहित्य सृजन संस्थान, प्लाट-6,से.-2, हारुन नगर कालोनी, फुलवारी शरीफ, पटना-5 (मोबा. 09570146864/09122914396 ई मेल: ांजींेंहंतमकपजवत/हउंपसण्बवउ) पर संपर्क किया जा सकता है। (समाचार सौजन्य: डॉ. तारिक असलम ‘तस्नीम’)
सरस्वती सुमन का हाइकु विशेषांक
सुप्रसिद्ध लघु पत्रिका सरस्वती सुमन का हाइकु विशेषांक वरिष्ठ हाइकु विदुषी डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी के सम्पादन में प्रकाशित हो रहा है। हाइकुकार अपने न्यूनतम 30 हाइकु परिचय व फोटो सहित डॉ. दीक्षित को जी-91, सी, संजयगांधीपुरम्(इन्दिरानगर), लखनऊ-16 (मोबाइल 09412549904) के पते पर भेज सकते हैं। (सूचना सौजन्य: डॉ. मिथिलेश दीक्षित)
सुप्रसिद्ध लघु पत्रिका सरस्वती सुमन का हाइकु विशेषांक वरिष्ठ हाइकु विदुषी डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी के सम्पादन में प्रकाशित हो रहा है। हाइकुकार अपने न्यूनतम 30 हाइकु परिचय व फोटो सहित डॉ. दीक्षित को जी-91, सी, संजयगांधीपुरम्(इन्दिरानगर), लखनऊ-16 (मोबाइल 09412549904) के पते पर भेज सकते हैं। (सूचना सौजन्य: डॉ. मिथिलेश दीक्षित)
कृष्ण कुमार यादव को ‘’मानव भूषण श्री सम्मान-2012‘‘
गगन स्वर पब्लिकेशन, गाजियाबाद के तत्वाधान में हिन्दी भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य समारोह में युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव को ’मानव भूषण श्री सम्मान-2012’ से सम्मानित किया गया। श्री यादव को यह सम्मान प्रशासन में रहते हुए मानव सेवा एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित दया, क्षमा, करूणा और सदाचार गुणों से मंडित होने के कारण एवं साहित्य सेवा व सामाजिक कार्यों में प्रशंसनीय उपलब्धियों के लिए प्रदान किया गया है। श्री कृष्ण कुमार यादव वर्तमान में इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर कार्यरत हैं। उक्त जानकारी गगन स्वर पब्लिकेशन, गाजियाबाद के संयोजक श्री अवधेश कुमार मिश्र (एडवोकेट) ने दी।
सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय 35 वर्षीय श्री कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को देश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में देखा-पढा जा सकता हैं। विभिन्न विधाओं में अनवरत प्रकाशित होने वाले श्री यादव की अब तक कुल 6 पुस्तकें- अभिलाषा (काव्य संग्रह), अभिव्यक्तियों के बहाने (निबन्ध संग्रह), अनुभूतियां और विमर्श (निबन्ध संग्रह) और इण्डिया पोस्ट: 150 ग्लोरियस ईयर्स, क्रान्ति यज्ञ: 1857 से 1947 की गाथा, जंगल में क्रिकेट (बाल-गीत संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डॉ0 राष्ट्रबन्धु द्वारा श्री यादव के व्यक्तित्व व कृतित्व पर ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का विशेषांक जारी किया गया है तो इलाहाबाद से प्रकाशित ‘‘गुफ्तगू‘‘ पत्रिका ने भी श्री यादव के ऊपर परिशिष्ट अंक जारी किया है। आपके जीवन पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ (सं0 डॉ0 दुर्गाचरण मिश्र) भी प्रकाशित हो चुकी है। शताधिक प्रतिष्ठत संकलनों/पुस्तकों में विभिन्न विधाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं और आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर, पोर्टब्लेयर और दूरदर्शन से भी रचनाएँ और वार्ता प्रसारित हो चुके हैं। श्री कृष्ण कुमार यादव ब्लॉगिंग में भी सक्रिय हैं और ‘शब्द सृजन की ओर‘ और ‘डाकिया डाक लाया‘ नामक उनके ब्लॉग चर्चित हैं। श्री कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्व विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु इत्यादि अनेकों सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। श्री कृष्ण कुमार यादव को इस सम्मान हेतु बधाईयाँ। (समाचार प्रस्तुति: गोवर्धन यादव संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा, 103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा-480001, म.प्र.)
’’रोशनी का कारवॉ’’ पुस्तक का विमोचन सम्पन्न
कवि डॉ0 डी0एम0मिश्र की आठवीं पुस्तक ’रोशनी का कारवाँ’ का विमोचन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं कवि सुभाष राय ने कहा कि वही कविता बड़ी होती है जो जीवन का परिष्कार करती है। उन्हांेने कहा कि इस संग्रह की ज्यादातर ग़ज़लंे सामाजिक और राजनैतिक चेतना की हैं जो हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। कवि अपने समय के आवेग को भलीभाँति पहचानता है। मुख्य अतिथि कथाकार शिवमूर्ति जी ने कहा कि डी0एम0मिश्र की पुस्तक में गाँव है। लोक है। कहने का तरीका है। उन्होंने कहा कि उनसे मुझे बड़ी उम्मीदंे हैं। इस अवसर पर कमलनयन पाण्डेय, डा0 राधेश्याम सिंह, डा0 चन्देश्वर, डा0 इन्द्रमणि कुमार व शायर तेवर सुलतानपुरी ने भी पुस्तक एवं डॉ.मिश्र की रचनाधर्मिता पर प्रकाश डाला। (समाचार सौजन्य : डॉ. डी.एम.मिश्र)
आकांक्षा यादव को ‘राष्ट्रीय शिखर श्री सम्मान’
इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चित ब्लॉगर आकांक्षा यादव को ‘राष्ट्रªीय शिखर श्री सम्मान’ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान अपने जीवन के अमूल्य क्षणों में साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। आकांक्षा यादव इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं एवं युवा साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं। उक्त जानकारी इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान भारत (कैम्प-बालाघाट, मध्य प्रदेश) के राष्ट्रªीय अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र सिंह गहरवार ने दी।
गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायें और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो/पुस्तकों में प्रकाशित हुई हैं, वहीं आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ इंटरनेट पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’, ‘सप्तरंगी प्रेम’ व ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लॉगर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। ’क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।
इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। आकांक्षा यादव जी को उनके सृजनात्मक एवं मंगलमयी जीवन के लिए अनंत शुभकामनाएं।
(समाचार प्रस्तुति: गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा, 103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा-480001, म0प्र0)
हाइकु संग्रह ‘कांधे पै घर’ का लोकार्पण
डा. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ के उद्योग नगर प्रकाशन गा.बाद द्वारा प्रकाशित हाइकु संग्रह ‘कांधे पै घर’ का लोकार्पण डा. लक्ष्मीनारायण लाल स्मृति फाउन्डेशन एवं यू.एस.एम.पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में हुआ। इस अवसर पर डा. सीतेश आलोक, डा. महीप सिंह, डा. नरेन्द्र मोहन, डा. हरीश नवल, डा. ब्रज किशोर शर्मा, एवं डा. दया प्रकाश सिन्हा उपस्थित थे। (समाचार सौजन्य: डा. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’)
देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2012
मुरादाबाद की संस्था ‘अक्षरा’ द्वारा ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2012’ वर्ष 2010-2011 में प्रकाशित मौलिक काव्य कृतियों पर दिया जायेगा। प्रविष्टियां कृति की चार प्रतियों, एक पता लिखे पोस्टकार्ड तथा एक टिकिट लगे व पता लिखे लिफाफे के साथ 31.08.2012 तक पंजीकृत डाक/कोरियर द्वारा योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, अक्षरा, ए.एल.49, सचिन स्वीट्स के पीछे,दीनदयाल नगर फेज-1, काँठ रोड, मुरादाबाद-244001, उ.प्र., (मोबा. 09412805981) के पते पर भेजी जा सकती हैं। (समाचार सौजन्य: योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’)
शिवानन्द सिंह सहयोगी को दोहरा सम्मान
साहित्यकार शिवानन्द सिंह सहयोगी को उज्जैन की सामाजिक संस्था नवसंवत्-नवविचार द्वारा ‘विक्रमोत्सव विक्रमाब्द 2069’ के शुभावसर पर ‘उज्जयनी सृजन-अभिनन्दन’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया। एक अन्य संस्था शब्द प्रवाह साहित्य मंच उज्जैन द्वारा सहयोगी जी की कृति ‘घर-मुँडेर की सोन चिरैया’ के लिए अखिल भारतीय साहित्य सम्मान-2012 का प्रथम पुरस्कार तथा उन्हें ‘शब्द रत्न’ की उपाधि दी गयी।(समाचार सौजन्य: शिवानन्द सिंह सहयोगी)
कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव के बाल-गीत संग्रहों का विमोचन
युगल दंपत्ति एवं चर्चित साहित्यकार व ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव के बाल-गीत संग्रह ’जंगल में क्रिकेट’ एवं ’चाँद पर पानी’ का विमोचन पूर्व राज्यपाल डॉ. भीष्म नारायण सिंह और डॉ. रत्नाकर पाण्डेय (पूर्व सांसद) ने राष्ट्रभाशा स्वाभिमान न्यास एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, नई दिल्ली द्वारा गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में 27 अप्रैल, 2012 को किया। उद्योग नगर प्रकाशन, गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित इन दोनों बाल-गीत संग्रहों में कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव के 30-30 बाल-गीत संगृहीत हैं। देश-विदेश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर निरंतर प्रकाशितहोने वाले श्री यादव की जहाँ यह छठीं पुस्तक प्रकाशित है, वहीं आकांक्षा यादव की यह प्रथम मौलिक कृति है।
इस अवसर पर दोनों संग्रहों का विमोचन करते हुए अपने उद्बोधन में पूर्व राज्यपाल डॉ. भीश्म नारायण सिंह ने युगल दम्पति की हिंदी साहित्य के प्रति समर्पण की सराहना की। उन्होंने कहा कि बाल-साहित्य बच्चों में स्वस्थ संस्कार रोपता है, अतः इसे बढ़़़ावा दिए जाने की जरुरत है। पूर्व सांसद डॉ. रत्नाकर पाण्डेय ने युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति बढती अरुचि पर चिंता जताते हुए कहा कि, यह प्रसन्नता का विषय है कि भारतीय डाक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी श्री यादव अपनी जड़ों को नहीं भूले हैं और यह बात उनकी कविताओं में भी झलकती है। युगल दम्पति के बाल-गीत संग्रह की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें आज का बचपन है और बीते कल का भी और यही बात इन संग्रह को महत्वपूर्ण बनाती है।
कार्यक्रम में राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास के संयोजक डॉ. उमाशंकर मिश्र ने कहा कि यदि युगल दंपत्ति आज यहाँ उपस्थित रहते तो कार्यक्रम की रौनक और भी बढ़ जाती। गौरतलब है कि अपनी पूर्व व्यस्तताओं के चलते यादव दंपत्ति इस कार्यक्रम में शरीक न हो सके। आभार ज्ञापन उद्योग नगर प्रकाशन के विकास मिश्र द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में तमाम साहित्यकार, बुद्धिजीवी, पत्रकार इत्यादि उपस्थित थे। (समाचार प्रस्तुति : रत्नेश कुमार मौर्या, संयोजक - ’शब्द साहित्य’ द्वारा- विनीत टन्डन, 908 ए, दरियाबाद, इलाहाबाद - 211003)
डॉ. सुमन शर्मा को डी.लिट. की उपाधि
डॉ. सुमन शर्मा को उनके शोध प्रबन्ध ‘हिन्दी का दोहा साहित्य: कथ्य और शिल्प के बदलते रूप (भक्तिकाल से आज तक)’ पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर वि.वि. आगरा ने डी.लिट. की उपाधि प्रदान की है। डा. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ की पुत्री डॉ. सुमन दिल्ली प्रशासन के एक हायर सेकेन्डरी विद्यालय में अध्यापनरत हैं।(समा. सौजन्य: डा. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’)
शशांक मिश्र भारती सम्मानित
शशांक मिश्र भारती को हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला के राष्ट्रीय कवि संगम-14 और 15 अप्रैल 2012 के अवसर पर भाषा विभाग पंजाब पटियाला में हिन्दी भाषा सृजन सम्मान से पूर्व कैबिनेट मंत्री पंजाब सरकार श्री ब्रह्म महिन्द्रा व संस्थाध्यक्ष श्री सुभाष शर्मा द्वारा शाल और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। (समाचार सौजन्य: शशांक मिश्र भारती)
एर्नाकुलम, कोची में त्रिदिवसीय साहित्यिक सेमिनार
इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स(इंसा) व नेशनल बुक ट्रस्ट,नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में 16-18 मार्च 2012 को त्रिदिवसीय साहित्यिक सेमिनार एर्नाकुलम, कोची में आयोजित किया गया। इसमें साहित्य और भारतीय समाज में पुस्तकालय का योगदान, विज्ञान और साहित्य, साहित्य में महिलाओं की भूमिका, दलित साहित्य, भारतीय साहित्य की विश्वव्यापकता, ब्लाग लेखन और साहित्य, संस्कृत और साहित्य विषयों पर विमर्श के साथ अनेक रचनाकारों ने विविध रचनाओं का पाठ भी किया। (समाचार सौजन्य: नन्दलाल भारती)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें